बताते है कि गोविन्द साहब का जन्म अम्बेडकर नगर जिले के जलालपुर थाना क्षेत्र के नगपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम पृथुधर द्विवेदी माता का नाम दुलारी देवी था। बाबा का बचपन का नाम गोविन्दधर द्विवेदी था। इनके पूर्वज जमीदार, थे कहा जाता है कि इनके पिता और माता धार्मिक विचार से ओतप्रोत थे। इसी का प्रतिफल रहा कि बाल्यकाल से ही बाबा को शास्त्रों का ज्ञान एवं भगवत गीता के प्रवचन में प्रवीण हो गये।
एक बार इन्ही के गांव के रामलाल नाम का व्यक्ति जो प्रतिदिन भगवत गीता का प्रवचन सुनने आता था लेकिन कुछ दिनों बाद वह आना बंद कर दिया। बाबा ने अपने शिष्यों से पूछा रामलाल कहा हैं तो शिष्यों ने बताया कि वह नहीं आयेंगे। इसके बाद बाबा स्वयं रामलाल से मिले, रामलाल से न आने का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि जो आप प्रवचन में कहते है क्या वह सारी बाते सही हैं। तब बाबा ने रामलाल को अपने गुरू भीखा साहब के पास गाजीपुर जिले के भुड़कुड़ा गांव में ले गये और भीखा साहब से सारी बातों को अवगत कराए।
उन्होने कहा आप सभी चारो धाम की यात्रा कीजिए तत्पश्चात मैं प्रभु के दर्शन कराउंगा। इसके बाद उन्होंने चारो धाम की यात्रा की फिर अपने गुरू भीखा साहब से मिले। उन्होने उनसे गुरू गुलाब साहब की समाधि को खोलकर देखने को कहा। जब उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें भगवान कृष्ण व बलराम का प्रतिबिम्ब दिखाई दिया। वे गुरू से दीक्षा लेकर घर के लिए चल दिये। उनके गुरू ने कहा था जहां पर रात विश्राम करोगे वही स्थान तुम्हारी तपोस्थली बन जायेगी। बाबा सायंकाल में बूढी गंगा नदी के किनारे 400बिघवा नामक जंगल में पहुंचे और वहीं पर बाबा ने 150 वर्षो तक शेरशाह सूरी के शासन काल में तप किया।
मान्यता है कि जब बाबा यहां आये तो इस जंगल में कोई नहीं आता था। एक बार एक सेठ अपनी नाव द्वारा यात्रा कर रहा था उसकी नाव डूबने लगी उसने बाबा का स्मरण किया स्मरणो उपरान्त उसकी नौका किनारे लग लगी। उसने बाबा की तपेभूमि पर मन्दिर का निर्माण कराया और पोखरी की मरम्मत करवायी। इसी तरह से बाबा के अनेक भक्तों ने यहां निर्माण कराया। बाबा ने समाधि संवत 1726 ई में अगहन हिन्दी माह शुक्ल पक्ष के दशमी के दिन ली थी। इसलिए इसी तिथि को बाबा के स्थान पर एक माह के भव्य मेले का आयोजन होता है। मेले में देश विदेश से दर्शनार्थी आते हैं।
इस मेले की विशेषता है कि बाबा के द्वारा निर्मित सरोवर में स्नान कर बाबा को खिचडी व बतासा चढ़ाया जाता है। बाबा सबकी मुरादे पूरी करते हैं। मेले में विभिन्न प्रकार की दुकानें लगती है। यहां खेती के सामान से लेकर हाथी, घोड़े, गधा, खच्चर आदि की भी मंडी लगती है। लोगों का मानना है कि मेले में वस्तुएं सस्ती मिलती हैं,इस मेले की प्रसिद्ध मिठाईं खजला है। मेले में आये हुए श्रद्धालु थियेटरों में रूक कर रात भर मेले का आनन्द लेते हैं।
बाबा के शिष्य रामचन्द्र साहब के शिष्य महन्त बाबा विरेन्द्र दास का कहना है कि बाबा के दरबार में आने वाला कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। प्रतिवर्ष मेले में महीनों पहले से ही आस-पास की बाजारो में बुन्देलखण्ड व कानपुर से आये खजला व्यवसायिओं की दुकानें सज जाती है। खजला व्यवसायी सुबाष ने बताया कि जीएसटी लागू होने से कच्चे माल की खरीदरारी मंहगी हो रही है। जिससे व्यापार बाधित है। गुलाब थियेटर के मालिक ठाकुर प्रसाद ने कहा कि इस क्षेत्र के दो प्रसिद्ध मेले हैं दुवार्सा व गोविन्द साहब का मेला, दुर्वास का मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। हम हमेशा यहां पहुंचते है।