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आजमगढ़

आजादी के बाद से अबतक बीजेपी की दो सफल रैलियों के पीछे इस पिछड़े नेता का हाथ

दारा सिंह ने साबित किया अति पिछड़ों के बिना सुरक्षित नहीं है किसी दल का भविष्य

आजमगढ़Jul 14, 2018 / 09:01 pm

Sunil Yadav

आजादी के बाद से अबतक बीजेपी की दो सफल रैलियों के पीछे इस पिछड़े नेता का हाथ

आजादी के बाद से अबतक बीजेपी की दो सफल रैलियों के पीछे इस पिछड़े नेता का हाथ

आजमगढ़. सीएम योगी आदित्य नाथ द्वारा पीएम की रैली के ठीक पहले लिया गया कड़ा निर्णय ने न केवल भाजपा की इज्जत बचाई बल्कि सीएम की भी साख बच गयी। वैसे इस रैली ने साबित कर दिया कि यूपी ही नहीं बल्कि देश की सत्ता बिना अति पिछड़ों के सहायोग के हासिल करना संभव नहीं हैं।
यूं भी कहा जा सकता है कि बिना अति पिछड़ों के किसी भी दल का भविष्य सुरक्षित नहीं है। कारण कि जो भाजपा सवर्ण नेताओं के भरोसे कभी पांच दस हजार की भीड़ इकट्ठा करने के लिए तरस जाती थी उसी पार्टी में बसपा छोड़कर आये एक अति पिछड़ी जाति के नेता दारा सिंह चौहान ने दो रैलियों को ऐतिहासिक बना दिया। आज विपक्ष भी सोचने के लिए विवष है।

गौर करें तो ढाई दशक पहले देश में कांग्रेस का एकछत्र राज था। यूपी ही नहीं बल्कि केंद्र और ज्यादातर राज्यों में इसी दल का शासन था। लेकिन वर्ष 1980 में बीजेपी का उदय हुआ। इसके बाद नब्बे के दशक में यूपी में सपा और बसपा अस्तित्व में आयी। उस दौर में जनसंघ तो थी लेकिन तब इस पार्टी के एक- दो सांसद और विधायक वाली पार्टी हुआ करती थी।

सपा और बसपा के अस्तित्व में आने के बाद सपा ने यादव को अपना वोट बैंक बनाया तो बसपा ने दलितों को। कांग्रेस कमजोर हुई और बीजेपी अस्तित्व में आयी तो मुस्लिम मतदाता उस पार्टी को वोट करना शुरू किये जो बीजेपी को पराजित करे। इस दौरान अति पिछड़े और अति दलित को सभी दल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते रहे।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कट्टर हिंदू छबि और पिछड़ी जाति के नेता नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो अतिपिछड़े बीजेपी की तरफ लामंबद हुए और आजादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल ने केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी। इस दौरान बीजेपी ने सपा और बसपा के कई बड़े नेता जो अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते थे उन्हें पार्टी में शामिल किया।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व आजमगढ़ के आईटीआई मैदान में बीजेपी की रैली प्रस्तावित हुई तो विपक्ष ने मजाक उड़ाना शुरू किया कि 10 हजार की भीड़ न जुटा पाने वाली पार्टी 50 हजार की झमता वाले आईटीआई मैदान को कैसे भरेगी। रैली की जिम्मेदारी बसपा छोड़कर भाजपा में आए दारा सिंह चौहान को सौंपी गयी। पार्टी ने उन्हें पिछड़े वर्ग प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया। दारा सिंह के प्रयास से यह रैली ऐतिहासिक रही। इस रैली को पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की 1989 की रैली के बाद सबसे सफल रैली मानी गई। विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जब बीजेपी की यूपी में सरकार बनी तो दारा सिंह को वन मंत्री बनाया गया। अखिलेश सरकार में यह मंत्रालय उनके सबसे करीब बाहुबली दुर्गा प्रसाद यादव के पास था।

अब पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के शिलान्यास के लिए शनिवार को पीएम मोदी की रैली होनी थी तो पार्टी ने क्षेत्रीय महामंत्री सहजानंद राय को इसका प्रभारी बनाया गया लेकिन हाल में जिला अध्यक्ष बने सहजानंद राय ने अपनी अलग सत्ता चलानी शुरू की और जय नाथ सिंह को दरकिनार कर अपने करीबी सवर्ण लोगों को रैली की जिम्मेदारी सौंप दी। दो दिन पूर्व रैली की तैयारियों का जायजा लेने जब सीएम योगी आये तो बसपा छोड़ बीजेपी में आये कृष्णमुरारी विश्वकर्मा ने सीएम के सामने अति पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाया।
इस दौरान उन्होंने कुछ साक्ष्य भी दिये। इसके बाद फिर सीएम को दारा सिंह चौहान याद आये और उन्होंने रैली की सारी जिम्मेदारी दारा सिंह चौहान को सौंप दी। इसके बाद पिछड़े नेता खुद को साबित करने के लिए पूरी तन्मयता से लग गये और परिणाम रहा कि पीएम योगी की रैली भीड़ के मामले में ऐतिहासिक बन गयी।
By- रणविजय सिंह

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