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आजमगढ़

मायावती ने कांग्रेस के बाद यूपी में समाजवादी पार्टी को भी दिया बड़ा झटका, इस फैसले ने बढ़ाई सपा की बेचैनी

समाजवादी पार्टी का वर्चस्व तोड़ने के लिये उठाया कदम।

आजमगढ़Sep 23, 2018 / 12:57 pm

रफतउद्दीन फरीद

Akhilesh Yadav and Mayawati

अखिलेश यादव और मायावती

आजमगढ़. साल 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती 2019 के लोकसभा चुनाव के आते-आते एक बार फिर बसपा को किंग मेकर नहीं तो पुरानी वाली स्थिति में ला खड़ा करने की कवायद में जुटी हैं। छत्तीसगढ़ में मायावती ने इसी के तहत कांग्रेस को बड़ा झटका देकर अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन कर लिया। उधर मध्य प्रदेश में भी वह बीजेपी को हराने के लिये मायावती का साथ चाहने वाली कांग्रेस को शायद झटका दे सकती हैं। इधर हर कीमत पर यूपी में गठबंधन करने की बात कहने वाले अखिलेश यादव को भी बुआ जी झटके देना नहीं भूल रहीं। 2019 के पहले मायावती ऐसे फैसले लगातार ले रही हैं कि जो समाजवादी पार्टी के लिये मुश्किल पैदा करने वाला है। इस बार मायावती ने एक और फैसला लिया है जो समाजवादी पार्टी को उसके गढ़ में ही कमजोर करने के लिये उठाया गया बताया जा रहा है।
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बसपा ने संगठन में फेरबदल करते हुए अरविंद कुमार को मुलायम सिंह यादव का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ का जिलाध्यक्ष बना दिया है। अरविंद की दलितों के बीच गहरी पैठ है साथ ही दियारा क्षेत्र जहां बसपा ने हमेशा सपा को कड़ी टक्कर दी है उस क्षेत्र पर इनकी मजबूत पकड़ है। इस क्षेत्र के जीते बिना आजमगढ़ संसदीय सीट जीतना नामुमकिन है। इसलिए इसे बसपा का दाव माना जा रहा है।
बता दे कि आजमगढ़ संसदीय सीट पर बसपा को अंतिम बार 2008 के उपचुनाव में जीत मिली थी। वहीं लालगंज सीट वह 2009 में जीतने में सफल रही थी। लालगंज संसदीय सीट पर सपा बसपा के बीच हमेशा से बराबरी का मुकाबला रहा है। वर्ष 2014 में मोदी लहर के कारण बीजेपी यहां खाता खोलने मंे जरूर सफल रही थी। आजमगढ़ संसदीय सीट पर बसपा को लगातार दो चुनाव 2009 व 2014 में हार का सामना करना पड़ा है। जबकि बसपा ने यह सीट 1989 में उस समय जीता था जब खुद कांशीराम और मायावती चुनाव हार गयी थी। पूरे देश में बसपा को सिर्फ दो सीट मिली थी जिसमें एक आजमगढ़ थी।
अस्तित्व के खतरे से जूझ रही बसपा एक बार फिर संगठन को मजबूत बनाकर अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए बेचैन है। यही वजह है कि एक तरफ महागठबंधन की बात हो रही है और दूसरी तरफ बसपा अकेले मैदान उतरने की तैयारी कर रही है। यानि कि यदि किन्हीं कारणों से गठबध्ंान न हो तो उसका चुनाव प्रभावित न हो। बसपा ने लालगंज संसदीय सीट पर प्रत्याशी की घोषणा भी कर दी है। पूर्व मंत्री पूरी ताकत के साथ चुनाव की तैयारी में जुटे है।
अब बसपा अपनी कमजोर कड़ी आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में पार्टी को मजबूत बनाने में जुटी है। कारण कि बसपा के लिए यह सीट जीतना आसान भले न हो लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। एक तो वह पहले यहां से जीत हासिल कर चुकी है और दूसरे क्षेत्र की पांच विधानसभा में से दो मुबारकपुर और सगड़ी पर पार्टी का कब्जा है। तीन अन्य सीटों पर पार्टी के हार जीत का अंतर बहुत अधिक नहीं था। यहीं वजह है कि बसपा पहले संगठन को दुरूस्त करने में लगी है।
तैयारी के तहत ही पार्टी ने अनिल कुमार को हटाकर अरविंद कुमार गौतम को जिलाध्यक्ष बनाया है। अरविंद पहले गोपालपुर विधानसभा के प्रभारी के तौर पर काम कर चुके है। पार्टी का उद्देश्य दलितों में पैठ मजबूत करने के साथ ही अन्य जातियों को अपने पक्ष में करना है।
By Ran Vijay Singh

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