बता दें कि साज फाउंडेशन महिलाओं को रोजनगार से जोड़ने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। कारोना संक्रमण के चलते हुए लाक डाउन के दौरान इन्होंने भारी मात्रा में मास्क तैयार कर रोजगार सृजन का काम किया है। इस दौरन इन्होंने घर से निकलने वाले कबाड़ से मूर्ति व अन्य सजावटी सामान बनाने की कला महिलाओं की सिखाई। रोजगार मिला तो इनका कुनबा बढ़ता गया। महिलाओं में उत्साह भी जागा।
अब दीपावली पर संस्था से जुड़ी 150 महिलाएं लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों और दीपक के निर्माण में जुटी है। मूर्ति निर्माण में गाय के गोबर, तुलसी का बीज, तीसी (अलसी), लोहबान का प्रयोग किया जा रहा है। ताकि यह पर्यावरण के पूरी तरह अनकूल हों। निर्माण में जुटी महिलाओं का दावा है कि इन्हें गमले में भी आसानी से विसर्जित किया जा सकेगा। मूर्ति गमले में विसर्जन होगा तो इसमें से तुलसी के पौधे अंकुरित होंगे।
मूर्तियों की कीमत भी चीनी मूर्तियों के मुकाबले काफी कम होने के कारण इनकी मांग भी खूब है, लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं। पांडिचेरी, महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित कई प्रांतों में इनकी भारी डिमांड देखने को मिल रही है। खास बात है कि महिलाएं डिमांड के सापेक्ष 8 प्रतिशत मूर्तियों की आपूर्ति कर चुकी हैं।
साज फाउंडेशन की निदेशक डा. संतोष सिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश के सार्थक गुप्ता, चंद्रकांत, जनार्दन धाकड़े, प्रयागराज की स्मृति त्रिपाठी, गाजियाबाद के विभूषित गुप्ता, वाराणसी खादिम्स की कविता मालवीय, नागपुर के विवेक गुप्ता, झांसी के सुधाकर धाकड़े ने मूर्तियां मंगाई हैं। 20 हजार मूर्तियां आपूर्ति की जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आरएसएस के लोगों ने भी मूर्तियों मंगाईं हैं।
उन्होंने बताया कि मूर्तियों को बनाने के लिए देसी गायों का गोबर दो रूपये किलो खरीदा जाता है जिससे पशु पालकों को भी लाभ होता है। हमारा उद्देेश्य रोजगार सृजन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण है। हमने कदम बढ़ाया तो सफलता मिली। हमारे उत्पादों से चीन को पटखनी मिली है। यूट्यूब, फेसबुक पर लोग डिजाइन पंसद कर आर्डर दे रहे हैं। कच्चे माल की किल्लत नहीं है। सारे सामान आसानी से उपलब्ध होने वाले हैं। ऐसे में यह रोजगार दूसरों को भी अपनाना चाहिए। ताकि देशी सामानों को हर व्यक्ति तक पहुंचाया जा सके। इससे हम पर्यावरण संरक्षण में भी सहयोग कर सकते हैं।
BY Ran vijay singh