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पराली जली तो आजमगढ़ में बढ़ जाएगा कोरोना संकट, मानक से छह गुना अधिक प्रदूषित है यहां की आबोहवा

locationआजमगढ़Published: Oct 21, 2020 04:33:00 pm

सर्दियों में नम होती है हवा जिससे फेफड़ों को प्रभावित करते हैं प्रदूषण के कण
चिकित्सकों की मानें तो अगले कुछ दिन विशेष सावधानी की जरूरत, मास्क का हर हाल में उपयोग करने की सलाह

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प्रतीकात्मक फोटो

आजमगढ़. मौसम में हो रहा परिवर्तन और नम होती हवा के बीच अगर पराली जलाने पर नियंत्रण नहीं हुआ तो जिले में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। खासतौैर पर सांस रोगियों में इसका खतरा सर्वाधिक होगा। कारण कि जिले में प्रदूषण की स्थिति काफी गंभीर है। यहां वायु गुणवत्ता मानको की तुलना में छह गुना अधिक प्रदूषण है। पराली जलाने पर यह और भी बढ़ सकता है।

वर्ष 2019 में हुए सर्वे के मुताबिक जीयनपुर क्षेत्र में शाम को जो आंकड़े लिए थे, वे चैंकाने वाले रहे। यहां पीएम (पर्टिकुलेट मैटर) 10 कण (कणिका तत्व) अधिकतम 491 और न्यूनतम 291 रहा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों की तुलना में कई गुना अधिक प्रदूषित है। जबकि पीएम 2.5 की मात्रा अधिकतम 858 और न्यूनतम 770 रही, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 14 गुना अधिक जहरीली है। जिला मुख्यालय स्थित दीवानी कचहरी के आसपास पीएम 10 की मात्रा अधिकतम 671 और न्यूनतम 423 पाई गई, जो वायु गुणवत्ता मानकों की तुलना में छह गुना प्रदूषित है। लालगंज और मुबारकपुर में क्रमशः पीएम-10 छह गुना और पीएम 2.5 बारह (12) गुना पाया गया।

बता दें कि पीएम-10 धूल कणों से निर्मित होता है। जबकि पीएम 2.5 का निर्माण पराली, कूड़ा, डीजल और पेट्रोल जलने से होता है। कई प्रकार के गैसों और शीशा, पारा, कैडमियम आदि भारी तत्व मौजूद रहते हैं। तापमान कम होने और नमी होने के कारण पृथ्वी के करीब आ जाते हैं। इससे परेशानी बढ़ जाती है।

जिला महिला अस्पताल में तैनात डा. विनय कुमार सिंह यादव कहते हैं कि सर्दी के मौसम में किसी भी तरह का संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है। कोरोना भी इससे अलग नहीं है। प्रदूषण के कारण हानिकारक कण मुंह के रास्ते सीधे फेफड़ों तक पहुंचेंगे और श्वसन तंत्र बाधित होगा। इससे बचने का मुख्य उपाय हमेशा मास्क लगाना और शारीरिक दूरी का पालन और बार-बार हाथों को साफ करना है।

कृषि विज्ञान कोटवा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आरके सिंह कहते हैं कि सड़कों के निर्माण के दौरान धूल के गुबार, पराली जलाने और वाहनों के साइलेंसर से निकल रहा धुआं मौसम की हालत बिगाड़ देता है। सर्दियों में आसमान में लगभग छह से सात मीटर ऊपर आर्दता (नमी) रहती है, जिससे धूल के कण और धुआं जाकर रुक जाता है और फिर नीचे आ जाता है।

उन्होंने बताया कि यह स्थिति कोरोना के सामान्य मरीजों के लिए भी गंभीर साबित हो सकती है। सर्दियों में वायु जनित प्रदूषण हानिकारक साबित हो सकता है। कोराना वायरस खांसने, छींकने, बातचीत करने और सांस लेने के दौरान तरल कणों से फैलता है। वायु प्रदूषण में कोरोना वायरस प्रदूषित कणों के साथ शरीर में पहुंच जाता है। इन स्थितियों के दृष्टिगत शहर में वायु प्रदूषण पर अंकुश जरूरी है।

BY Ran vijay singh

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