ऐसा किसी विपक्षी नेता का आरोप नहीं बल्कि अधिकारियों की कथित निष्ठा पूर्ण कार्रवाई की पोल का खुद सरकारी आंकड़ों ने खोल दिया है। बताते चलें कि, गांव और शहरों में रह रहे मासूमों को कुपोषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार ने अस्तित्व में आते ही प्राथमिकता में रखा। तत्काल विभिन्न विभागों के 39 जिला स्तरीय अधिकारियों को कुल 78 गांव गोद दे दिए गए। शासन को इसकी सूचना दे दी गई।
दौरे और आपाधापी कुछ इस कदर तेज हुई कि, लगा इन गांवों का वास्तव में कायाकल्प हो जाएगा, लेकिन वर्तमान के आंकड़ों को जानकर आप सभी आश्चर्य में पड़ जाएंगे, क्योंकि महज आठ गांव ही अभी तक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुपोषण मुक्त ही हो पाए हैं। सरकार के ज्यादातर फरमानो को लेकर आंकड़ों से उसका पेट भरने में काबिलियत रखने वाले अधिकारी कुपोषण जैसे इस विशेष अभियान में भी ऐसी भूमिका निभाएंगे। ऐसा किसी ने सोचा नहीं था। पूरे जिले में अभियान चलाकर गांवों में 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों का वजन कराया गया था। वजन के अनुसार उनकी श्रेणी निर्धारित की गई। इसमें 31 हजार 78 बच्चे अति कुपोषित पाए गए थे और 81690 बच्चे कुपोषित मिले थे। इस बड़ी खबर को पत्रिका ने उठाया भी था। शासन के निर्देश पर सबसे खराब स्थिति वाले 78 गांवों को चिह्नित कर 39 अधिकारियों को गोद दिया गया। इन अफसरों पर गोद लिए गांव को कुपोषण मुक्त बनाने की जिम्मेदारी थी। पहले 26 जनवरी तक इन गांवों को कुपोषण मुक्त करना था। तय समय में कोई गांव कुपोषण मुक्त नहीं हुआ तो समय सीमा मार्च कर दी। अब जून भी आधा बीत गया है। मगर चिह्लित 78 में से सिर्फ आठ गांव ही कुपोषण मुक्त की सूची में शामिल हो पाए हैं। जिला कार्यक्रम अधिकारी के एम पांडेय से जब इस बावत बात की गयी तो उन्होंने सामने आए आंकड़ों के संदर्भ में बताया कि, कुपोषण मुक्त बनाने के लिए सिर्फ पोषाहार की ही जरूरत नहीं है। जागरूकता भी बड़ा माध्यम है। गोद लिए गांवों को कुपोषण मुक्त करने के लिए डीएम की ओर से कड़े निर्देश दिए गए हैं। जल्दी ही स्थिति में सुधार होगा।
input एस.पी.राय