बता दें कि वर्ष 1993 में सपा का गठन हुआ। इसके बाद से यह चौथा नगर पालिका आम चुनाव है। एक बार पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष गिरीश चंद श्रीवास्तव के निधन के बाद यहां उपचुनाव भी हो चुका है। पिछले तीन चुनावों में सपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी अधिवक्ता वसिउद्दीन को मैदान में उतारा गया। हर बार चुनाव के अंतिम समय में ध्रुवीकरण और सपा को हार का सामना करना पड़। वसिउद्दीन को दुर्गा प्रसाद यादव का खास माना जाता था लेकिन कभी दुर्गा प्रसाद यादव उनके लिए प्रचार नहीं किये।
इस बार सपा ने पहले ही तय कर लिया था किसी और जाति के उम्मीदवार पर दांव खेलेगी। चूंकि नगरपालिका दुर्गा यादव के विधानसभा में आती है इसलिए प्रत्याशी के चयन में उन्हें ही असल भूमिका निभानी थी। सभी दावेदारों को दरकिनार कर दुर्गा प्रसाद यादव ने अपने करीबी पदमाकर लाल को टिकट दिला दिया। पदमाकर के नाम की घोषणा भी नहीं हुई थी कि ठेकेदारी के लिए डीएम का पैर पकड़ने वाला उनका फोटो खुद सपा के लोगों ने वायरल कर दिया।
टिकट घोषित हुआ तो दावेदार एक जुट होकर भीतर ही भीतर निर्दलीय के साथ खड़े होने लगे। हालात के समझ खुद दुर्गा प्रसाद यादव को नगर क्षेत्र में प्रचार की कमान संभालनी पड़ी। सपा को लगा कि इससे उनका वोट बैंक एकजुट होगा और घुट्टुर आसानी से जीत जाएंगे। लेकिन इसको भी बागी दावेदारों ने गलत ढंग से पेश किया। उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को यह समझाना शुरू कर दिया कि जब तीन बार मुसलमान लड़ा तो पूर्व मंत्री कभी प्रचार मैदान में नहीं उतरे आज जब पड़ोसी और हिंदू मैदान में आया तो ऐसा लग रहा मानो खुद चुनाव लड़ रहे हैं।
यह हवा सपा के लिए घातक साबित हो रही है। कुछ मुस्लिम मतदाता भी अब इस बात की चर्चा कर रहे है कि जब सपा से मुस्लिम लड़ा तो उसके साथ भेदभाव हुआ। सूत्रों की माने तो जो मुस्लिम मतदाता कभी सपा को वोट बैंक होते थे उनमें से बड़ी संख्या में पार्टी को सबक सिखाने के लिए निर्दल के साथ खड़े हो गये है। इसके अलावा बसपा के प्रचार में पूर्व सांसद अकबर अहमद डंपी, विधायक शाह आलम उतर गये है। इससे भी मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव हो रहा है।
अब पार्टी हालात को देखते हुए भीतरघात करने वाले लोगों को पकड़कर मंच पर ला रही है उनसे भाषण भी कराया जा रहा है लेकिन मंच से उतरते ही वे फिर पार्टी को सबक सिखाने में जुट जा रहे है। वहीं दूसरी तरफ यह चुनाव दुर्गा प्रसाद यादव की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी जीत गई तो न केवल उसका खाता खुल जायेगा बल्कि दुर्गा प्रसाद यादव की भी बल्ले बल्ले होगी। उनका प्रभाव पार्टी में तो बढेगा ही साथ ही मतदाताओं में यह संदेश जाएगा कि दुर्गा का किला आज भी अजेय है। यदि सपा हार गई तो सबसे अधिक किरकिरी भी दुर्गा की ही होगी। साथ ही यह नाराजगी 2022 में उनके लिए मुसीबत बन सकती है।