खासबात है कि शहर में एक शौचालय के निर्माण में 98 हजार खर्च होने के बाद भी वह किसी काम की नहीं है जबकि गांवों में 12 हजार में ग्रामीणों को स्टैंडर शौचालय बनवाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सरकार की यह दोहरी नीति आम आदमी के समझ से भी परे है। रहा सवाल नगरपालिका को तो अधिकारी और अध्यक्ष पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है। ईओ इस मामले में कुछ भी बोलने के लिए तैयार ही नहीं है जबकि जिलाधिकारी नागेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि मामला अभी संज्ञान में आया है। इसकी जांच करायी जाएगी। जिस भी स्तर पर लापरवाही अथवा वित्तीय अनियमिता हुई है कार्रवाई की जाएगी।
By Ran Vijay Singh