scriptपूर्वांचल की सबसे बड़ी आबादी वाले जिले में गहराता जा रहा है रोजी-रोटी का संकट | Unemployment Increased Since 60 Years Continue in Azamgarh | Patrika News
आजमगढ़

पूर्वांचल की सबसे बड़ी आबादी वाले जिले में गहराता जा रहा है रोजी-रोटी का संकट

आजमगढ़ में सिमटते संसाधन के बीच लगातार बढ़ रही है बेरोजगारी।
अंतिम सांसें गिन रहे हैं निजामाबाद का पॉटरी उद्योग और मुबारकपुर साड़ी कारोबार। बंद हो रहे उद्योगों को बचाने के लिए नहीं हो रही कोई पहल। साठ सालों में आबादी में 25 लाख सेे अधिक की वृद्धि।

आजमगढ़Jul 29, 2019 / 11:01 am

रफतउद्दीन फरीद

Mubarakpur sareee Industries

मुबारकपुर साड़ी कारोबार (प्रतीकात्मक फोटो)

रणविजय सिंह
आजमगढ़. आबादी की दृष्टि से पूर्वांचल के सबसे बड़े जिले में रोजी रोटी का संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है। स्वयं सरकारी आकड़े बताते है जिले की विकास दर पिछले दो दशक में नीचे गिरी है जब कि आबादी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। परिणाम सामने है 83 प्रतिशत आबादी कृषि अथवा मजदूरी पर निर्भर हो गई है। बेरोजगारी से अपराध भी बढ़ रहा है लेकिन शासन प्रशासन द्वारा बंद हो रहे उद्योगों को बचाने के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है।
इसे भी पढ़ें

गांवों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था अब मल्टिनेशनल कंपनियों के हाथ

बता दें कि वर्ष 1901 में जब मऊ भी आजमगढ़ का हिस्सा था उस समय जिले की आबादी मात्र 1591654 इतनी थी। देश की आजादी के बाद 1951 में हुई जनगणना में जिले की आबादी 2106557 दर्ज की गई। यानि 50 साल से जिले की आबादी में सिर्फ 514903 की वृद्धि हुई। वर्तमान में जिले की आबादी 4616509 है। यानी इन साठ सालों में आबादी में 2509952 की वृद्धि हुई। यह वृद्धि उस स्थिति में है जब मऊ आजमगढ़ से अलग हो चुका है।
इसे भी पढ़ें

आजमगढ़ के इतने मुसलमानों ने ली भाजपा की सदस्यता, सपा के गढ़ में बीजेपी को बड़ा फायदा

आंकड़े साफ बताते है कि जिले में परिवार नियोजन के कार्यक्रम पूरी असफल रहे है। अब जनसंख्या नियोजन की बात करें तो साठ से अस्सी के दशक में निजामाबाद का पाटरी और मुबारकपुर का साड़ी उद्योग अपने चरम पर था। दोनों उद्योगों को देश में ही नहीं विदेश में भी ख्याति मिली। जिले के कई बुनकर और कुम्हार सरकार द्वारा सम्मानित किए गए। कई कुम्हारों को राष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित किया गया पर अफसोस सरकारी तंत्र की उपेक्षा से दोनों उद्योग गर्त में चले गए। अपना पुस्तैनी व्यवसाय छोड़ कुम्हार और बुनकर रोजी रोटी के लिए या तो महानगरों में पलायन कर रहे है अथवा मजदूरी कर रहे है। बुनकर तो अपने ही हथकरघे पर दैनिक मजदूरी करने के लिए बाध्य है। उद्योग के नाम पर यहां सिर्फ एक चीनी मिल है।
इसे भी पढ़ें

खाद्यान कालाबाजारी में फंसे तीन कोटेदार एफआइआर दर्ज
चीनी मिल को छोड़ दे तो जिला उद्योग शून्य हो चुका है। यहां नए उद्योग स्थापित करने के लिए भी कोई योजना नहीं है। जबकि वर्ष 2005 की आर्थिक गणना में यह साफ हो गया था कि विकास की दौड़ में जिला काफी पिछड़ गया है। रोजगार देने के मामले में जिले को प्रदेश में 41वां स्थान दिया गया था। जबकि इसी से अलग हुए मऊ को 9वां स्थान मिला था। आंकड़ों के मुताबिक यहां मात्र 17 प्रतिशत लोग ही सरकारी नौकरी अथवा व्यवसाय से जुड़े है।
इसे भी पढ़ें

शौचालय निर्माण में अनियमितता पड़ी भारी, सेक्रेटरी सस्पेंड, प्रधान सहित दोनों पर एफआईआर

शेष आबादी कृषि अथवा मजदूरी पर निर्भर है। इसमें भी कुल जोत के 86.3 प्रतिशत ऐसे किसान है जिनके पास एक हेक्टेयर से कम खेत है। मिल बंद होने के बाद बेराजगारी के आंकड़े में वद्धि हुई है। कारण कि मिल में काम करने वाले हजारों लोग बेरोजगारों की लाइन में खड़े हो गए है। आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि जनसंख्या में नियंत्रण की सारी कवायद इस जिले में फेल रही है। हो भी क्यों न सरकार द्वारा चलाया जा रहा परिवार नियोजन कार्यक्रम कागज पर सिमट कर रह गया है।

Home / Azamgarh / पूर्वांचल की सबसे बड़ी आबादी वाले जिले में गहराता जा रहा है रोजी-रोटी का संकट

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो