इमरजेंसी के दौरान चंद्रशेखर के हुए करीबी
यशवंत सिंह ने अपनी पढ़ाई पूरी की तो वह समाजवादी नेता पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सानिध्य में चले गए। 1975 में जब इमरजेंसी लगी तो वह चन्द्रशेखर और पूर्व सीएम राम नरेश यादव के काफी करीबी हो गए। इमरजेंसी के दौरान वह 18 महीने के लिये जेल भी गए। इन सब के दौरान वह सियासत में और पक्के होते चले गए।
पहली बार जनता दल के टिकट पर बने विधायक
पहला चुनाव उन्होंने मुबारकपुर से 1984 में लड़ा और 250 वोटों से आर गए। हार नहीं मानी और 1989 में फिर जनता दल के टिकट पर उसी सीट पर लड़े और जीते। 1991 में चन्द्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी से लड़े पर हार गए। 1993 में ऐसा भी समय आया जब उन्हें किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया और निर्दल लड़े तो एक बार फिर हार गए। 2004 में मुलायम सिंह यादव ने यशवंत को सपा के टिकट पर एमएलसी बनाया। 2010 और 2016 में भी सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया।
बसपा को तोड़कर बनवाई थी भाजपा की सरकार
यशवंत सिंह ने कोई पहली बार भाजपा की मदद नहीं की। एक बार पहले भी वह भाजपा की सरकार बनवाने में मददगार साबित हो चुके हैं। 1996 में वह बसपा में चले गए। बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने गठबंधन की सरकार बनायी तो उन्हें आबकारी मंत्री पद से नवाजा गया। ये वही सरकार थी जिसमें छह महीने के टर्म का समझौता था। पर छह महीने सरकार चलाने के बाद बसपा ने हाथ खींच लिये और गठबंधन टूट गया। इस दौरान यशवंत पहली बार भाजपा के लिये बड़े मददगार बनकर उभरे। उन्होंने बसपा के तीन दर्जन से ज्यादा एमएलए तोड़कर जनतांत्रिक बसपा बनाकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी।
यशवंत सिंह की उस दौर में काफी पूछ थी जब तक मुलायम सिंह की चलती थी। उन्होंने ही यशवंत को तीन बार एमएलसी बनवाया। पर इधर कुछ दिनों से अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल में वह पार्टी में अलग-थलग पड़ चुके थे। हालांकि वह एमएलसी थे पर पार्टी में उनकी पहले जैसी पूछ नहीं रही थी। सपा की पारिवारिक राजनैतिक लड़ाई के बाद जब कमान अखिलेश के हाथ में आ गई तो मुलायम के करीबी होने के चलते वह भी अलग-थलग ही रहे। कद्दावर मंत्री बलराम यादव और कुछ अन्य यादव नेताओं से भी उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा। जब भाजपा सरकार बनी तो उन्होंने सपा छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।