बागपत

World Arthritis Day: हार्मोनल बदलाव के कारण महिलाओं में फैल रही गठिया की बीमारी, चिकित्सकों ने दी ये सलाह

World Arthritis Day: वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ज्ञानेश्वर टांक के अनुसार 50 प्रतिशत मरीजों में बीमारी जांच के दौरान पकड़ में नहीं आती है।

बागपतOct 12, 2021 / 01:11 pm

Nitish Pandey

World Arthritis Day: बागपत. महिलाओं में हार्मोनल बदलाव के कारण गठिया की बीमारी फैल रही है। शुरूआती दौर में इस बीमारी के प्रति लापरवाही काफी घातक सिद्ध होती है। जिस कारण से यह बीमारी धीरे-धीरे काफी गंभीर रूप ले लेती है। अगर सुबह उठने पर हाथ-पैर के जोड़ों में दर्द और सूजन के साथ अकड़न है, तो सतर्क होने की जरूरत है। जांच में पकड़ में न आने पर भी कई मरीजों में गठिया-रूमेटाइड अर्थराइटिस का शिकार हो रहे हैं। इस बीमारी में लक्षणों की पहचान सबसे ज्यादा जरूरी है।
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वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ज्ञानेश्वर टांक के अनुसार 50 प्रतिशत मरीजों में बीमारी जांच के दौरान पकड़ में नहीं आती है। इस बीमारी को सीरो निगेटिव गठिया कहते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर इससे पीड़ित मरीज के अंग टेढ़े होने लगते हैं।
डॉ. ज्ञानेश्वर टांक ने बताया कि अब इस समय हर उम्र के लोगों में गठिया की बीमारी नजर आ रही है। उनके पास आने वाले मरीजों में अधिकांश 30 से 50 वर्ष की उम्र के बीच के हैं। गठिया के कई प्रकार के टेस्ट होते हैं, लेकिन ज्यादातर चिकित्सक दो जांचें यानी रूमेटाइड फैक्टर एवं एनटीसीसीपी की रिपोर्ट के आधार पर इलाज करते हैं।
डॉक्टरों ने बताया कि हाथ-पैर के छोटे व मझले जोड़ों में दर्द, सूजन, अकडऩ इस बीमारी के खास लक्षण हैं। दर्द करीब एक घंटे तक रहता है। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्ञानेश्वर टांक ने बताया कि गठिया लाइलाज नहीं रही। यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा होती है, क्योंकि उनके शरीर में 30-50 वर्ष की उम्र के बीच बड़े हार्मोनल बदलाव होते हैं।
यह एक प्रकार की आटोइम्यून बीमारी है। जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अतिसक्रिय हो जाती है। इससे शरीर में साइटोकाइन स्टार्म बनते हैं, जो शरीर के ऊतकों पर ही हमला कर देते हैं। इस बीमारी की कोई वजह नहीं पता की जा सकी है। जेनेटिक गड़बडिय़ां बड़ा कारण हैं।
उन्होंने बताया कि अर्थराइटिस जेनेटिक गड़बडिय़ों से भी होती है। जिसका इलाज मुश्किल है। अन्य अर्थराइटिस को दवाओं एवं योग से काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। कई मरीजों में बीमारी जांच में नहीं मिलती, ऐसे में लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है।
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