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UP Assembly Election 2022: जयंत ने पश्चिमी यूपी को हाईकोर्ट बेंच देने की घोषणा कर खेला बड़ा दांव, गरमाई सूबे की सियासत

locationमुजफ्फरनगरPublished: Oct 12, 2021 12:51:12 pm

Submitted by:

Nitish Pandey

UP Assembly Election 2022: विधानसभा चुनाव में अब चंद महीने ही शेष बचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इसी क्रम में रालोद ने मुजफ्फरनगर के बुढाना से महारैली करके अपना चुनावी आगाज कर दिया। महारैली का नाम आशीर्वाद पथ यात्रा रखा गया था। रालोद की इस महारैली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने पश्चिमी उप्र की एक प्रमुख मुद्दे को राजनैतिक मंच से हवा दे दी है।

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UP Assembly Election 2022: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों और 15 जिलों की 75 विधानसभा सीटों में से अधिकांश में सत्तारूढ भाजपा का दबदबा कायम हैं। इसके बावजूद भी भाजपा सरकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना नहीं करवा पाई। करीब 50 साल से चली आ रही हाईकोर्ट बेंच स्थापना की इस मांग को रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपनी बुढाना महारैली में हवा दे दी है। इससे पश्चिमी यूपी के साथ ही पूरे सूबे की सियायत गरमा गई है।
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मुजफ्फरनगर के बुढाना में राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बड़ा दांव खेलते हुए प्रदेश में सरकार बनने पर हाईकोर्ट बेंच देने की घोषणा कर दी है। जयंत चौधरी ने महारैली को संबोधित करते हुए कहा कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आई तो रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में हाईकोर्ट बेंच देंगा।
पिछले पांच दशक से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग का मुद्दा उठता रहा है। इसको लेकर कई बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं। पिछले 40 साल से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता बेंच की मांग के समर्थन में हर शनिवार को हड़ताल पर रहते हैं। बावजूद इसके अभी तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं के साथ ही जनता की इस आवाज को सरकारें अनसुना करती रही हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले पांच दशक से हाईकोर्ट बेंच की मांग शिद्दत से उठती आ रही है। लोकसभा चुनाव में भी राजनीतिक दल हाईकोर्ट बेंच देने का वादा खुले मंच से करने का साहस नहीं दिखा पाए हैं। खुद जयंत चौधरी के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे दिवंगत चौधरी अजित सिंह ये घोषणा करने की हिम्मत नहीं दिखा सके। जबकि उनका राजनैतिक गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही रहा है। 1980 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और मेरठ से कांग्रेस की प्रत्याशी मोहसिना किदवाई ने वादा किया था कि वे इसके लिए प्रयास करेंगी। लेकिन वे भी यह वादा पूरा नहीं कर पाई। प्रयाग के वकीलों के दबाव में सभी राजनीतिक दल हाईकोर्ट बेंच के मुद्दे से अपने को सार्वजनिक रूप से अलग करते रहे हैं।
सियासी गणित में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं अधिवक्ता

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में यहां के अधिवक्ता बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से लेकर तमाम बड़े राजनेता अधिवक्ता भी रहे हैं। हाईकोर्ट बेंच की मांग में शामिल रहे अधिवक्ता गजेंद्र धामा के रालोद संस्थापक अजित सिंह से काफी अच्छे संबंध रहे थे। वहीं ओमप्रकाश शर्मा जो कि वरिष्ठ अधिवक्ता हैं उनके कई कांग्रेसी दिग्गजों से संपर्क रहे।
सपा के पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे शाहिद मंजूर खुद अधिवक्ता हैं। नाम की फेहरिस्त काफी लंबी हो सकती है। ये तो वो गिने चुने नाम हैं। जो कि अपने पास मौका होते हुए भी हाईकोर्ट बेंच की मांग को पुरजोर तरीके से नहीं उठा सके। हाईकोर्ट बेंच का मुद्दा उछालकर जयंत ने कहीं न कहीं अधिवक्ताओं का समर्थन पाने की कोशिश की है। अगर वे अपने इस सियासी मकसद में कामयाब होते हैं तो इसका नुकसान सत्तारूढ भाजपा के साथ अन्य दलों केा भी उठाना पड़ सकता है।
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