अब होली के गीतों की परंपरा भी मंद पड़ चुकी है। होली के दिन ही दहन के वक्त गीत गाए जाते हैं। पहले होली के त्यौंहार से पूर्व गांवों में लोग घोटा दड़ी खेला करते थे। इसके खेल का आयोजन चांदनी रात की रौशनी में होता था। घोटा दड़ी आधुनिक हॉकी का ही पुराना रूप है, इसके लिए स्टीक के लिए खेजड़ी व बबूल की लकड़ी से घोटा (स्टीक) बनाकर रद्दी कपड़ों की वॉलीबाल की तरह बॉल बनाते थे और फिर दोनों टीमें एक दूसरी साइड में गेंद को घोटे से धकेल कर एक दूसरे के मौहल्ले में ले जाकर गोल करते थे। रात 11 से 12 तक इस खेल का आयोजन होता था लेकिन अब यह खेल बंद हो चुका है।
जब बाजारों में धुलण्डी पर निकलती थी सनेती बगरू. रंगों से सराबोर होली का त्यौहार यूं तो हर जगह अपनी अलग ही छाप छोड़ता है, लेकिन बगरू पिं्रट के नाम से विश्वविख्यात बगरू कस्बे में होली की धमाल निराली थी। अब समय भले ही बदल गया है, लेकिन होली की पुरानी यादें हमारे जेहन में अब भी ताजा हैं। पत्रिका ने जब कुछ बुजुर्गों से पुरानी यादें ताजा की।