खेतों में जल जाती है फसल
सिंचाई के ट्रांसफॉर्मर चोरी होने पर नया आने में 10 से 12 दिन लगने पर सिचंाई नहीं हो पाती है। ऐसे में फसल भी जल जाती है, वहीं ट्रांसफॉर्मर चोरी का भार भी उपभोक्ता पर ही आता है। खेजरोली निवासी आरटीआई कार्यकर्ता शंकरसिंह शेखावत ने बताया कि चोरी रोकने मेें नाकाम निगम चोरी ट्रांसफॉर्मरों का का भार भी उपभोक्ताओं से वसूल रहा है।
ठेका प्रथा के बाद बढ़ी वारदातें
निगम के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि निगम मेें जब से ट्रांसफॉर्मर बनाने, लाने व अन्य कार्यों की ठेका प्रक्रिया शुरू हुई है, तब से चोरियां बढ़ी हैं। चोर सिर्फ तांबे वाले ट्रांसफॉर्मर को ही निशाना बनाते हैं। एल्यूमीनियम वाले को छुते भी नहीं हैं।
कॉपर एवं ऑयल के लिए चेारी
चोर ट्रांसफॉर्मर को ढांचे से नीचे उतारने के बाद उसमेें से कॉपर निकाल लेते हैं। एक डीपी में औसतन 10 से 20 किलो कॉपर एवं 80 से 90 लीटर ऑयल होता है। बाजार मेें वेस्ट कॉपर का मूल्य 800 से 900 रुपए होता है। ऑयल को डीजल वाहन चलाने के काम लेते हैं।
डिमांड पर भेजे हैं ट्रांसफॉर्मर
ट्रांसफॉर्मर चेारी होने के बाद थाने में रिपोर्ट दर्ज होने पर सहायक अभियंता रिपोर्ट के साथ मीमो बनाकर भेजता है। इसके बाद डिमांड के आधार पर ट्रांसफॉर्मर उपलब्ध करवा देते हैं। आबादी व खेतों से चोरी हुए ट्रांसफॉर्मर नि:शुल्क उपलब्ध करवाते हैं। सुनसान, गैर आबादी क्षेत्र में चोरी होने पर उपभोक्ताओं से चार्ज लेते हैं।
हरिओम शर्मा, अधीक्षण अभियंता, विद्युत वितरण निगम जयपुर जिला वृत्त