नक्सल से अधिक उपेक्षा के दंश से जूझ रहे ग्रामीण
पहले बिजली अब फसल बीमा लाभ के लिए परेशान, नक्सल प्रभावित क्षेत्र के दर्जनों गांवों की पकने के पूर्व सूख गई धान फसल
नक्सल से अधिक उपेक्षा के दंश से जूझ रहे ग्रामीण
बालाघाट. नक्सल प्रभावित तो हम नाम के रह गए हैं साहब। हमारी तो असल समस्या शासन प्रशासन की उपेक्षा है। पहले गांवों में सड़क, बिजली और पानी का रोना था। इसके बाद नाम मात्र के लिए गांव में कम ओल्टेज की बिजली और कुछ जगह सड़क बनवा दी गई है। लेकिन अब भी हमारे गांव पिछड़ेपन और उपेक्षा का शिकार है। हमारे गांवों में आकर शासन की तमाम योजनाएं दम तोड़ देती है। ताजा मामला प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जुड़ा है।
यह व्यथा जिले के परसवाड़ा विखं क्षेत्र के अति संवेदनशील नक्सल प्रभावित क्षेत्र चालीसबोड़ी सहित अन्य गांव के गरीब किसानों ने सुनाई। मंगलवार को चालीसबोड़ी सहित आस-पास के करीब आधा दर्जन से अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीण और किसान अपनी समस्या लेकर जिला मुख्यालय पहुंचे थे। जिन्होंने अपनी समस्याओं का आवेदन कलेक्ट्रेट में भी दिया। ग्रामीणों के अनुसार उन्होंने सेवा सहकारी समितियों के माध्यम से ऋण लेकर धान की सफल लगाई। लेकिन सिंचाई के पानी के अभाव में उनकी खड़ी फसल सूखकर खराब हो गई है। अब उनके स्वयं के खाने के वांदे हो गए है। ऐसे में समिति से लिया गया ऋण लौटाने में वे असमर्थ है। इसलिए उनके ऋण माफ किए जाए। वहीं उन्होंने बताया कि उनके खातो से फसल बीमा योजना की राशि काटी गई थी। लेकिन फसल बीमा योजना की राशि नहीं मिली है। सभी ने शीघ्र ही उनकी सहायता की किए जाने की मांग की।
इन गांवों की फसलें हुई खराब
चालीसबोड़ी के सरपंच धनलाल उइके ने बताया कि उनके गांव सहित नक्सल प्रभावित ग्राम माटे, कावेली, बिठली, बोदालझोला, उसकाल चक्र, लत्ता, सोनेवानी, मोहनपुर सहित दो दर्जन से अधिक गांवों में सिंचाई के साधन नहीं है। यहां ग्रामीण किसान सिर्फ वर्षा के जल पर निर्भर होते है। इस वर्ष फसल खड़ी होने के दौरान तो वर्षा हुई और उनकी फसलें खड़ी भी हो गई। लेकिन फसल पकने के दौरान सिंचाई के लिए जल उपलब्ध नहीं हो पाया। अब इन सभी गांवों के सैकड़ों किसानों की एक से १०-१० एकड़ में लगाई गई धान फसल सूख गई है। जिससे किसान चिंचित और परेशान है। ऐसी स्थित या तो किसानों को त्यौहारी सीजन में गांव छोड़कर पलायन करना पड़ेगा या युवा किसान परेशान होकर गलत रास्ता भी अपना सकते है।
बिजली का भी नहीं मिल रहा लाभ
इसी तरह माटे ग्राम के किसान मुन्नालाल उइके, कावेली के रमेश यादव और कृपालसिंह मर्सकोले ने बताया कि उनके ग्राम के ग्रामीण सघन जंगलों के बीच निवास करते है। कुछ समय पूर्व गांव में बिजली विभाग के अधिकारियों ने वाह-वाही बटोरने गांवों में बिजली कनेक्शन किया है। लेकिन जब बिजली प्रदाय करना शुरू किया गया तो सामने आया कि यहां सिर्फ नाम के लिए बिजली दी गई है। उनके ग्रामों में किए कनेक्शनों से एक छोटा बल्फ भी पूरा नहीं जलता है। ऐसे में ऐसी बिजली से सिंचाई हो पाना संभव नहीं है। इन्होंने बताया कि गांव में अब भी कई-कई दिन बिजली गुल रहती है और ग्रामीणों को अंधेरे में जीवन यापन करना पड़ रहा है।
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