पांच हजार वर्ष पुरानी है यह कब्र
प्रदेश के जाने माने पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर अरुण कुमार शर्मा के अनुसार बालोद जिले के करकाभाट क्षेत्र का यह विशाल कब्र समूह पांच हजार वर्ष पुरानी है। इस तरह के कब्र बस्तर, नागालैंड, मणिपुर तथा अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में पाए गए हैं, उनमें ग्राम करकाभाट का कब्र समूह सबसे बड़ा व विशाल है।
प्रोफेसर शर्मा हाल ही में बालोद करकाभाट आए थे तब उनसे क्षेत्रीय अन्वेषक अरमान अश्क से एक भेंट के दौरान उन्होंने करकाभाट के कब्र समूह को राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ बताते हुए इसकी उपेक्षा पर अफसोस जाहिर किया। कहा कि भारत के इस पिछड़े क्षेत्र में भारत का गौरवशाली अतीत छिपा हुआ है। जिसे उजागर करने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा कोई भी प्रयास नहीं किया गया।
प्रत्यक्ष दौरे में पाया गया कि ग्राम करकभाट से मुजगहन मार्ग पर तो प्राचीन कब्रों के पास ही शराब बिक्री केंद्र और धान खरीदी केंद्र खोल दिया गया है। इसी मार्ग पर लोगों ने खेत और मकान भी बना लिए हैं, फिर भी शासन की नजर इस ओर अब तक नहीं गई है।
इसी तरह धमतरी मुख्य मार्ग पर ग्राम धनोरा के पास 14 वीं वाहिनी छत्तीसगढ़ सशस्त्र सुरक्षा बल बटालियन की बिल्डिंग बनकर तैयार है, वहीं एक बड़े स्थल में धान संग्रहण केंद्र बना दिया गया है। यह सभी स्थल महापाषाण कब्र समूह की परिधि में आता है। मामले में इतिहास के जानकार व क्षेत्रीय अन्वेषकों ने कहा कि क्षेत्र में इसी तरह बेरोकटोक बेजा कब्जा होते रहा तो प्राचीन सभ्यता का गौरवशाली अवशेष पूरी तरह नष्ट व बर्बाद हो जाएगा।
पुरातत्व विभाग व शासन को चाहिए कि करकाभाट के एक स्थान जहां पर बहुत सारे कब्र मौजूद हैं। उस जगह को संरक्षित व सुरक्षित करे। क्षेत्र में हो रहे बेजा कब्जा और अवैध उत्खनन तथा गिट्टी बनाने कार्य को रोकने के लिए मौखिक रूप से कलक्टर तथा
रायपुर स्थित पुरातत्व कार्यालय को दी गई थी, बावजूद इसके किसी भी प्रकार से रोकथाम की कार्रवाई नहीं की गई।
इस पूरे भू भाग में विगत चार-पांच वर्षों में बेजा कब्जा व भवन निर्माण का
काम तेजी से हुए हैं, वहीं खाली पड़ी जमीन में पत्थर खुदाई की चौड़ाई व मुरुम का खनन अभी भी जारी है। कहीं-कहीं सड़क के किनारे पुरातत्व विभाग ने चेतावनी का बोर्ड लगा जरूर है, परंतु उस बोर्ड का लोगों पर कोई असर होता नहीं दिखता। उप संचालक पुरातत्व विभाग जेआर भगत ने बताया कि मामले में अब तक शिकायत नहीं आई है।
दुर्लभ जगह को सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी है। निरीक्षण कर स्थिति की जानकारी ली जाएगी। माइनिंग विभाग को चाहिए कि अवैध खनन करने वालों पर कार्रवाई करे। जिला प्रशासन को भी चाहिए कि इस ओर
ध्यान दे। अन्वेषक बालोद अरमान अश्क ने बताया कि इस पूरे दुर्लभ भाग में विगत चार पांच वर्षों में बेजा कब्जा तेजी से हुए हैं, वहीं खाली जमीन पर अवैध खनन जारी है। पुरातत्व विभाग ने चेतावनी का बोर्ड लगाकर स्थिति देखने नहीं आए।
दुर्लभ जगह पर इसी तरह कब्जे होते रहे, तो प्राचीन सभ्यता का गौरवशाली अवशेष पूरी तरह नष्ट व बर्बाद हो जाएगा। पुरातत्व विभाग व शासन को चाहिए कि करकाभाट के एक स्थान पर जहां बहुत सारे कब्र मौजूद हैं से संरक्षित व सुरक्षित करे। पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर अरूण कुमार शर्मा ने बताया कि बालोद जिले के करकाभाट क्षेत्र का यह विशाल कब्र समूह पांच हजार वर्ष पुराना है। बस्तर, नागालैंड, मणिपुर तथा अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में पाए ऐसे कब्रों में से ग्राम करकभाट का कब्र समूह सबसे बड़ा व विशाल है। इसकी उपेक्षा पर अफसोस है।
वर्ष 1999 में सर्वे के दौरान ग्राम करकाभाट, करहीभदर, सोरर, चिरचारी, मुजगहन, कन्नेवाड़ा, बरही, बरपारा, कपरमेटा, धोबनपुरी, धनोरा, भरदा आदि गांव में लगभग 5 हजार प्राचीन कब्रों को चिन्हांकित किया गया था, परंतु क्षेत्र में विकास की दृष्टि से आधे से ज्यादा कब्र बर्बाद हो गए हैं। इसमें सड़क, नहर, बांध के अलावा अवैध रूप से गिट्टी पत्थर उत्खनन व मुरुम खनन करने वालों ने अपनी पैठ जमा ली है। इस तरह के अवैध कार्यों पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं लगाई जा सकी है।