scriptकमरछठ पर सगरी में पूजा करने के बाद महिलाओं ने पसहर चावल खाकर तोड़ा व्रत | Halsashthi : Women pashar Rice after eating Broken fast | Patrika News
बालोद

कमरछठ पर सगरी में पूजा करने के बाद महिलाओं ने पसहर चावल खाकर तोड़ा व्रत

हलषष्ठी का पर्व जिला मुख्यालय सहित अंचल में धूमधाम से मनाया गया। माताओं ने अपनी संतान के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखा। सुबह से पूजा की तैयारी में जुटी मााताएं दोपहर होते ही सगरी की पूजा करने निकल पड़ी।

बालोदSep 02, 2018 / 12:24 am

Chandra Kishor Deshmukh

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कमरछठ पर सगरी में पूजा करने के बाद महिलाओं ने पसहर चावल खाकर तोड़ा व्रत

बालोद . शनिवार को हलषष्ठी का पर्व जिला मुख्यालय सहित अंचल में धूमधाम से मनाया गया। माताओं ने अपनी संतान के लिए दिनभर निर्जला व्रत रखा। सुबह से पूजा की तैयारी में जुटी मााताएं दोपहर होते ही सगरी की पूजा करने निकल पड़ी। कमरछठ पर शहर के शिवालयों और मोहल्लों में सगरी बनाकर पूजा करने महिलाओं की भीड़ लगी रही। सुबह से निर्जला व्रत कर महिलाओं ने दोपहर को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी भी सुनी। इस अवसर पर माताओं ने सगरी (कुंड) बनाकर उसे सजाया भी और उसमें मिट्टी की नाव बनाकर भी छोड़ी।
बच्चों की पीठ पर पोती मारकर कीदीर्घायु की कामना
शाम को सूर्य डूबने के बाद पसहर चावल और छह तरह की भाजी व दही खाकर अपना व्रत तोड़ा। पूजा से लौटने के बाद माताओं ने अपने बच्चों की पीठ पर पीली पोती मारकर उनके दीर्घायु की कामना की।नगर के शिव मंदिरों सहित देवी मंदिरों में कमरछठ की सामूहिक पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ लगी रही। दोपहर बाद मंदिर में एक के बाद एक ग्रुप में आई महिलाओं ने पूजा की और कथा भी सुनी। जो महिलाएं मंदिर तक नहीं पहुंची, उन्होंने घर के पास ही गड्ढा खोदकर सगरी बनाई और मिलकर पूजा-अर्चना की। जिला मुख्यालय के विभिन्न मोहल्लों में महिलाओं ने करमछठ की सामूहिक पूजा-अर्चना की।
पसहर चावल खाया
कमरछठ के दिन महिलाओं ने बिना हल के उपजे पसहर चावल जो खेतों की मेड़ पर होता है, उसे ग्रहण किया। साथ ही गाय के दूध, दही, घी के बदले भैंस के दूध, दही, घी का सेवन किया। सारदा ठाकुर ने बताया कि छत्तीसगढ़ में कमरछठ के दिन हल को छूना तो दूर हल चली जमीन पर भी महिलाएं पैर नहीं रखती और हल चले अनाज को ग्रहण नहीं करती।
भगवान बलराम का मनाया जन्म दिन
मान्यता है कि हलषष्ठी के दिन बलराम का जन्म हुआ था और उनके दो दिन बाद जन्माष्टमी को कृष्ण का जन्म हुआ था। वही भगवान कार्तिकेय का जन्म भी हल षष्ठी के दिन माना जाता है। बलराम को शस्त्र के रूप में हल मिला था इसलिए इसे हल षष्ठी भी कहा गया है।
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दल्लीराजहरा : निर्जला व्रत कर महिलाओं ने भगवान शिव और पार्वती की पूजा
नगर सहित आसपास ग्रामीण अंचल में माताओं ने संतान की दीर्घायु की कामना को लेकर कमरछठ पर्व मनाया। सगरी स्थल पर सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना के बाद माताओं ने अपने संतानों की पीठ पर छह बार पोथा मारा। कमरछठ पर्व के चलते बाजार में सुबह से ही पसहर चावल, लाई, महुआ, छह प्रकार की भाजी व छह प्रकार के अन्न, खम्हर के डंठल टहनी व खम्हार पत्ते से बनाए गए दोने व पत्तल की विशेष मांग बनी रही। कमरछठ पूजा के लिए पंडरदल्ली क्षेत्र वार्ड 2 स्थित अंगार मोती मैया मंदिर प्रांगण, हॉस्पिटल सेक्टर शिव मंदिर प्रांगण सहित मंदिरों के प्रांगण, सृजन दुर्गा उत्सव मैदान हॉस्पिटल सेक्टर, शताब्दी नगर, निर्मला सेक्टर, पटेल कॉलोनी, ट्यूबलर शेड, पुराना बाजार मोंगरा दफाई, गांधी चौक क्षेत्र सहित विभिन्न वार्डों और आसपास ग्रामीण अंचल के घर आंगन व सार्वजनिक स्थल में सामूहिक रूप से कमरछठ पूजा के लिए दो गडढे युक्त सगरी का निर्माण किया गया।
मिट्टी से बनाएं शिवलिंग, नांदिया बैल, नाव, भौंरा, बांटी
माताओं ने मिट्टी से शिवलिंग, नांदिया बैल, नाव, भौंरा, बांटी, आदि खिलौने बनाए। कपड़े का पोथा भी बनाया। सुबह से व्रत रखने वाली माताएं सज धजकर एवं पूजन सामग्री की थाल सजाकर दोपहर के समय अपने घर मोहल्ले के आसपास बनाई गई सगरी स्थल पर एकत्र हुई। जिन्होंने सगरी के एक गड्ढे में दूध एवं दूसरे गड्ढे में जल भरा। मिट्टी से निर्मित सगरी को खम्हार की टहनियों व कुश से सजाया गया और खिलौने रखे गए। वहीं माताओं ने सामूहिक रूप से पंडित की अगुवाई में विधि विधान पूर्वक भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा अर्चना कर कमरछठ पर्व से जुड़ी छह तरह की कथाओं का श्रवण किया। जिसके बाद सगरी मेें सभी खिलौनों एवं छह प्रकार के अन्न अर्पित किए गए। श्रीफल व लाई के साथ छह प्रकार के बीज में महुआ, तिवरा, चना, गेहूं, मसूर, मटर आदि का प्रसाद वितरण किया गया।
खेत-खलिहान से बनाए रखी दूरी
माताओं ने इस दिन अपने-अपने घर में पसहर चावल पकाया। छह प्रकार की भाजी से सब्जी बनाई जिसमें नमक का परहेज किया और इसे पकाने के लिए खम्हार के डंठल को चम्मच के रूप में उपयोग किया गया। संध्या बेला में पसहर चावल एवं छह प्रकार की भाजी से बनी सब्जी ग्रहण कर माताओं ने अपने व्रत की समाप्ति की। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं व माताओं ने कमरछठ पर्व पर खेत खलिहान से दूरी बनाए रखी। इसके पीछे यह धारणा है कि इस दिन हल से जुताई वाली जमीन पर माताओं या गर्भवती महिलाओं का चलना या पैर रखना अशुभ होता है।
अनिष्ट से होती है रक्षा
पूजा स्थल से अपने घर लौटकर माताओं ने संतानों की पीठ पर छह बार पोथा मारा। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से संतानों को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है व उनकी आयु लंबी होती है एवं किसी भी तरह के अनिष्ट से उनकी रक्षा होती है।

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