नवरात्रि में हम देवी मां की भक्ति आराधना कर रहे हैं। दूसरी ओर जिला मुख्यालय में संचालित सुख आश्रय (वृद्धा आश्रम) में जिनके बेटे संपन्न होते हुए भी अपनी मां को वृद्धाश्रम में भेजने को मजबूर कर दिया। आज भी ये माताएं सुख आश्रय में रहकर जीवन बिता रही हैं। आश्रम संचालन करने वाली आरती व दिलीप सोनवानी इन माताओं की सेवा कर रही हैं। इन महिलाओं के बेटे-बेटियां सहित परिजन देखने व पूछने तक नहीं आते। कई महिलाएं अपने बेटे-बहू से परेशान होकर आई हैं। कई महिलाओं को उनके बेटे ने घर से निकाल दिया है।
वृद्धाश्रम में एक महिला है, जो अपना नाम पता नहीं बता पा रही। वह राजस्थान तो कभी बिहार में रहने की बात कहती है। आज तक सही पता नहीं बता पाई। लेकिन महिला राजस्थानी लगती है। यह महिला सालभर पहले एक कथा कार्यक्रम में आने की बात कह रही है, जो बिछड़ गई। दूसरी ट्रेन में बैठकर छत्तीसगढ़ आ गई। भटकते हुए बालोद पहुंच गई। महिला को उम्मीद है कि वह एक दिन जरूर अपने गांव जाएगी। परिजनों की याद में रो पड़ती है।
सुख आश्रय में कुल 14 महिलाएं है। इनमें से अधिकांश महिलाएं संपन्न हैं। महिलाओं ने बताया कि बचपन से बेटे-बेटियों को पाल-पोस कर बड़ा किया। शादी रचाई। अब उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं तो हमें घर से निकाल दिया। सबसे बड़ी सच्चाई यह है यहां रह रहीं कुछ महिलाएं घर व धन से संपन्न हैं। कोई बीएसपी कर्मी है तो कोई पटवारी यहां तक बेटे-बेटियां कार में चल रहे हैं। बड़े शहरों में रह रहे हैं।
इस आश्रय स्थल में एक ऐसी मां है, जिनके बेटे लालची हैं। जब महिला को वृद्धाश्रम लाया तो उनके बेटे ने गले से सोने के माला व हाथ से ऐंठी निकाल ली। सभी महिलाएं अपने बेटे, बहू व बेटियों की यातना यादकर रो पड़ती हैं।
यहां रहने वाली महिलाओं का कहना है कि इस सुख आश्रय की व्यवस्था से वह बेहद खुश हैं। घर से भी अच्छा सम्मान यहां मिल रहा है। समय पर खाना व इलाज भी मिलता है।