चोरों ने बताया कि पहले वे बाइक चुराते। फिर ऐप्लीकेशन के जरिए फर्जी दस्तावेज तैयार कर लेते। लोगों को भरोसे में लेने के लिए दस्तावेज के प्रिंटआउट पर नोटरी की सील-साइन मार देते। इसी तरह उन्होंने 53 बाइक बेच डाली। चोरों ने सिस्टम में खुलेआम सेंध मारते हुए पूरी वारदात को अंजाम दिया। जिम्मेदारों को भनक तक नहीं लगी। गौरतलब है कि शहर समेत जिलेभर में बाइक चोरी की घटनाएं बढ़ी हुई हैं। इसे देखते हुए एसएसपी सदानंद कुमार ने एएसपी अविनाश ठाकुर और एसडीओपी आशीष आरोरा के नेतृ़त्व में चोरों की धरपकड़ के लिए एक टीम बनाई थी।
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टीम को बाइक चोरी की शिकायतें तो मिल रहीं थीं। लेकिन, इन बाइक के इस्तेमाल की खबर नहीं लग रही थी। यानी क्या बाइक बेच दी गई है? अगर हां तोे इसका इस्तेमाल कौन कर रहा है? आदि। चोरों का क्लू तलाशने पुलिस ने शहरभर में लगे सीसीटीवी के फुटेज भी खंगाल डाले। मोबाइल कॉल रेकॉर्ड के जरिए भी आरोपियों को तलाशने की कोशिश की गई। इसी दौरान भाटापारा टीआई अमित पाटले को खबर लगी कि एक व्यक्ति बाइक के लिए खरीदार ढूंढ रहा है। पुलिस को यह व्यहिक्त मोटर साइकिल चोरी होने वाली कई जगहों के सीसीटीवी फुटेज में भी नजर आया था। ऐसे में उसे गिरफ्तार कर कड़ाई से पूछताछ की गई। आखिर में उसने चोरी की बात कबूली। अन्य 5 आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया। पुलिस ने बाकियों को भी गिरफ्तार कर लिया है। पकड़े गए आरोपियों में अमन खान, सदर अली, भानु टंडन, कमलेश ध्रुव, अब्दुल कादिर के अलावा एक अपचारी बालक भी शामिल है।
गिरोह में सबका काम बंटा हुआ था। मिली जानकारी के अनुसार, एक नाबालिग समेत चार आरोपी पर बाइक चुराने की जिम्मेदारी थी। इसके लिए ये लोग बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन समेत अन्य सार्वजनिक पार्किंग वाली जगहों पर पहले रेकी किया करते थे। कोई बाइक एक या इससे ज्यादा दिन तक एक ही जगह खड़ी दिख जाती तो इसे ही अपना टारगेट बनाते। बाइक चोरी करने के बाद ये लड़के उसे कुछ दिनों तक छिपाकर भी रखते थे। जब लगता कि अब मामला शांत हो गया है, अब पकड़े जाने का डर नहीं है, उसके बाद ही बाइक बाहर निकालते।
चोरी की बाइक को ठिकाने लगाने के लिए गिरोह उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करवाता था। इसकी जिम्मेदारी अमन खान पर थी। वह गूगल प्ले स्टोर पर मौजूद एक ऐप्लीकेशन के जरिए गाड़ियों की फर्जी आईसी व अन्य कागज तैयार किया करता था। 53 बाइक के फर्जी दस्तावेज बनाते हुए उसे इस काम में इतनी एक्सपर्टिज आ चुकी थी कि वह हूबहू असली दिखने वाले फर्जी दस्तावेज तैयार करने लगा था। पुलिस ने उससे ऐप्लीकेशन पर फर्जी दस्तावेज बनवाकर समझने की कोशिश भी की है कि आखिर चोर इतनी आसानी से सब कैसे कर लेते हैं!
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