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बलोदा बाज़ार

उज्ज्वला गैस योजना से मोहभंग, फिर लकड़ी और कंडे के सहारे महिलाएं

महिलाओं को धुएं से छुटकारा दिलाने के लिए जिस उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। अब उनके घरों की छतों से फिर धुएं की लकीरें दिखने लगी है।

बलोदा बाज़ारJan 24, 2019 / 05:10 pm

Deepak Sahu

ujjawala yojna

उज्ज्वला गैस योजना से मोहभंग, फिर लकड़ी और कंडे के सहारे महिलाएं

तिल्दा नेवरा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ग्रामीण महिलाओं को धुएं से छुटकारा दिलाने के लिए जिस उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। अब उनके घरों की छतों से फिर धुएं की लकीरें दिखने लगी है। पत्रिका ने पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि बमुश्किल 15 से 20 फीसदी लोग ही दोबारा गैस सिलेंडर भरवाने पहुंच रहे हैं। कई गांव में हालत और भी खराब है या फिर यह कहा जाए कि उन गांव में केंद्र की महत्वपूर्ण योजना पूरी तरह से फेल हो चुकी है।

तिल्दा तहसील में तीन हजार से ज्यादा कनेक्शन दिए गए हैं लेकिन कई ऐसे लोग है जो दोबारा टंकी भरवाने गैस एजेंसी तक नहीं पहुंचे। इसका एक प्रमुख कारण शुरुआती 6-7 सिलेंडरों पर सब्सिडी नहीं मिलना भी है। दरअसल पूरी तरह मुफ्त लगने वाली इस योजना में सिर्फ खाली टंकी की कीमत शामिल नहीं है। गरीब परिवारों को यह कनेक्शन 16 सौ लेकर 2000 तक के ऋण पर दिए गए हैं। इस ऋण की भरपाई कनेक्शन धारकों को बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर खरीद कर चुकानी पड़ती है। योजना के आंकड़ों में सबसे ज्यादा गिरावट तब आई, जब बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत हजार रुपए को पार कर गई।

इन सब का नतीजा यह रहा कि उपभोक्ताओं ने गैस चूल्हे को कबाड़ के साथ घर के कोने में रख दिया। ग्राम सिरवे में उज्ज्वला योजना में 25 कनेक्शन दिए गए हैं। इसी तरह ग्राम खमरिया, कोहका, कुदरु आदि गांवों में कनेक्शन दिए गए हैं। जिनमें से 15 फीसदी लोग भी दोबारा रिफिल भराने नहीं पहुंचे।ज्यादातर गरीब परिवार फिर से लकड़ी और कंडे के धुएं वाले चूल्हे पर ही खाना बनाने को मजबूर हैं। पहले उपभोक्ताओं को सब्सिडी वाली कीमत ही अदा करनी पड़ती थी और सब्सिडी की राशि सीधे कंपनियों के खाते में चली जाती थी। अब उपभोक्ताओं को टंकी की पूरी राशि एकमुश्त देनी होती है। और सब्सिडी खाते में आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर बैंकिंग सुविधाओं के चलते भी ग्रामीणों को सब्सिडी का यह तरीका रास नहीं आ रहा।

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