जहर सेवन से गंभीर युवक को वाड्रफनगर अस्पताल से रेफर किए जाने के बाद संजीवनी 108 से मेडिकल कॉलेज अस्पताल अंबिकापुर ले जाया जा रहा था। अस्पताल से 5 किमी दूर निकलते ही जंगल के बीच संजीवनी खराब हो गई। करीब डेढ़ घंटे तक संजीवनी वहीं खड़ी रही। ऐसे में मरीज की तबीयत और खराब होती चली गई। जब उसे दूसरे वाहन से मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंचे तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
सरकार की ओर से चलाई गई संजीवनी 108 एंबुलेंस की वजह से गुरुवार को फिर एक गरीब के बेटे की मौत हो गई। संजीवनी सायरन बजाती हुई निकली तो थी जान बचाने लेकिन वह जान की दुश्मन बन गई। दरअसल जिले के ग्राम पंचायत चेरा के दशरथ (25) पिता नन्दकिशोर ने जहर खा लिया था।
उसे आनन-फानन में वाड्रफनगर चिकित्सालय लाया गया, जहां मरीज की हालत गंभीर होती देख डॉक्टरों ने उसे अंबिकापुर रेफर कर दिया। फिर उसे जिस संजीवनी 108 से लेकर उसे निकले वह महज पांच किलोमीटर की दूरी ही तय कर पाई थी कि बीच जंगल में उसका एक पहिया वाहन की बॉडी से चिपकने लगा और वह बीच जंगल में ही खड़ी हो गई। ऐसे में परिजन के हाथ-पांव फुल गए। वे परेशान हो गए। परिजनों ने बताया कि वे लगभग डेढ़ घंटे तक वहीं रहे।
प्राइवेट एंबुलेंस से ले गए लेकिन नहीं बची जान
बीच जंगल में संजीवनी के बिगडऩे से मरीज के परिजन को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। फिर उन्होंने किसी तरह एक प्राइवेट एम्बुलेंस की व्यवस्था की और बेटे को लेकर वहां से निकले लेकिन उसकी हालत और बिगड़ती गई।
अंबिकापुर के जिला चिकित्सालय में पहुंचते ही उसने दम तोड़ दिया। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसे ही चलाई जा रही है संजीवनी? ऐसी खटारा गाडिय़ों पर सरकार क्यों इंसानों की जिंदगी दांव पर लगा रही है।