सफाई के अभाव में जलाशय नहीं होते उपयोग नेपाल के लगभग एक पचास किलोमीटर लम्बी सीमा के समानान्तर फैला यह इलाका भांभर जैव भौगोलिक क्षेत्र के रुप में जाना जाता है। हार्ड एरिया होने के कारण यहां भूगर्भीय जल की संभावना नगण्य है। नेपाल के पहाड़ी इलाकों से आने वाले और बारिश के पानी को संग्रहीत करने के लिये इस इलाके में ग्यारह जलाशयों का निर्माण काराया गया था। इनमें से अधिकांश जलाशयों का निर्माण आजादी के पूर्व बलरामपुर रियासत के समय में हुआ। समय के साथ जलाशयों और पहाड़ी नालों की सफाई न होने से इन जलाशयों की जल संग्रहण क्षमता काफी कम हो चुकी है और ये जलाशय किसानों के लिये अनुपयोगी साबित हो रहे है।
कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पहाड़ी नालों की सफाई न होने से नेपाल से आने वाला पानी बिखर जाता है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ होती है। जबकि ऊपरी इलाके सूखे ही रह जाते हैं। चार दशक पूर्व इण्डो-डच परियोजना के तहत लगभग 250 नलकूप इन इलाको में लगाये गये थे लेकिन अधिकांश सफल नहीं हो सके।
डैम बनाने की योजना पर काम कर रहा प्रशासन पानी के विखराव को रोकने के लिए जिला प्रशासन इस इलाके में चेकडैम बनाने की योजना पर काम कर रही है। पानी का संकट झेल रही इस आबादी में थारु जनजातियों की लगभग 50 हजार की वह आबादी भी शामिल है जिससे यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का गहरा लगाव है।