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बैंगलोर

14 साल बाद कांग्रेस ने भाजपा से छीना बल्लारी का सियासी गढ़

नहीं चला श्रीरामुलू का जादू, भारी पड़ी कांग्रेस की एकजुटता

बैंगलोरNov 08, 2018 / 08:41 pm

Ram Naresh Gautam

KKK

14 साल बाद कांग्रेस ने भाजपा से छीना बल्लारी का सियासी गढ़

बेंगलूरु. इस साल दीपावली कांग्रेस के लिए खुशियां लेकर आई। पार्टी 14 साल बाद कभी अपने मजबूत राजनीतिक गढ़ रहे बल्लारी लोकसभा सीट को भाजपा से छीनने में कामयाब रही।

2004 से भाजपा लगातार इस सीट पर जीतती रही थी लेकिन इस बार कांग्रेस और जद-एस गठबंधन ने आक्रामक चुनाव अभियान और मजबूत उम्मीदवार के सहारे इस सीट को भाजपा से छीन लिया।
1951 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1999 के लोकसभा चुनाव तक लगातार कांग्रेस इस सीट पर जीतती रही। 1999 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यहां से जीतकर ही संसदीय राजनीति में कदम रखा था।
सोनिया ने भाजपा नेता सुषमा स्वराज को हराया था। हालांकि, तब भाजपा का जिले में कोई ज्यादा प्रभाव नहीं था लेकिन बाद में यह क्षेत्र भाजपा का मजबूत किला बन गया।

इस चुनाव के पश्चात ही खनन कारोबार से जुड़े रेड्डी बंधुओं के राजनीतिक क्षितिज पर उदय के बाद इस क्षेत्र में भाजपा का सियासी दबदबा बढ़ा लेकिन रेड्डी बंधुओं का प्रभाव जिले की राजनीति में घटने के साथ ही भाजपा की पकड़ भी कमजोर होती गई और इस बार कांग्रेस ने यह सीट छीनकर उसे आम चुनाव से पहले करारा झटका दिया है।
1999 में अपने परिवार की परंपरागत अमेठी सीट से भी जीतने के कारण सोनिया ने बल्लारी से इस्तीफा दे दिया था। सोनिया के इस्तीफे के बाद 2000 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस जीती लेकिन उसके बाद 2004, 2009 और 2014 में यहां भाजपा जीती।
भारी पड़ा बाहरी उम्मीदवार
कांग्रेस अपने इस गढ़ को वापस पाने के लिए काफी लंबे अरसे से संघर्ष कर रही थी लेकिन स्थानीय नेताओं में मनमुटाव, जिला संगठन में गुटबाजी और दो मंत्रियों के बीच शीतयुद्ध के कारण कांग्रेस अंतिम क्षणों तक उम्मीदवार तय कर पाई।
जिले से कांग्रेस के दो विधायक-आनंद सिंह व बी नागेंद्र मंत्री बनाए जाने के लिए दबाव डाल रहे थे तो मंत्री रमेश जारकीहोली और डी के शिवकुमार के बीच उम्मीदवार को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी।
अंतत: पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के करीबी विधान पार्षद वी एस उग्रप्पा को पार्टी ने टिकट देने का फैसला किया।

पेशे से वकील उग्रप्पा तुमकूरु जिले के रहने वाले हैं, जिसके कारण भाजपा ने उनके बाहरी होने का मुद्दा बनाया लेकिन मतदाताओं ने उग्रप्पा को भारी मतों के अंतर से जीता दिया।
इतनी बड़ी जीत की उम्मीद ना तो उग्रप्पा को थी और ना ही कांग्रेस के नेताओं को ही। अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित इस सीट से कांग्रेस और भाजपा, दोनों के ही उम्मीदवार वाल्मीकि समुदाय से थे।
भाजपा ने जे. शांता को टिकट दिया था जो पूर्व मंत्री बी. श्रीरामुलू की छोटी बहन हैं। शांता 2009 में इस सीट पर जीत चुकी थीं। कभी जिले की राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाने वाले पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी के करीबी श्रीरामुलू के इस्तीफे के कारण ही इस सीट पर उपचुनाव हुआ था।
इस सीट पर हुए 16 आम चुनावों में से 13 बार कांग्रेस और 3 बार भाजपा यहां जीती है। इस सीट पर अब तक दो बार उपचुनाव हुए हैं और दोनों में कांग्रेस जीती।
इस सीट पर इससे पहले अंतिम बार 2000 में कांग्रेस जीती थी। इस बार सीधे चुनावी मुकाबले में उग्रप्पा ने शांता को 2 लाख 43 हजार 161 मतों के अंतर से हराया।


पर्दे के पीछे थी असली जंग
बल्लारी पर राजनीतिक वर्चस्व की असली लड़ाई पर्दे के पीछे चल रही थी। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के मतपत्र पर भले ही उग्रप्पा और शांता का नाम था लेकिन असली लड़ाई कुछ और नेता ही लड़ रहे थे।
कांग्रेस की कमान सिद्धरामय्या और शिवकुमार ने संभाल रखी थी तो भाजपा का पूरा दारोमदार श्रीरामुलू के सियासी कौशल पर टिका था। रेड्डी बंधुओं के कमजोर होने के बाद श्रीरामुलू बल्लारी में भाजपा के मजबूत नेता के तौर पर उभरे थे लेकिन इस बार उनका जादू भी नहीं चला।
जनार्दन रेड्डी के बल्लारी प्रवेश पर लगी रोक भी भाजपा को भारी पड़ी। हालांकि, जनार्दन रेड्डी अपने धुर विरोधी सिद्धरामय्या पर निशाना साधने मेंं पीछे नहीं रहे। चुनाव प्रचार ेके अंतिम दौर में सिद्धरामय्या के खिलाफ रेड्डी की कुछ टिप्पणियों पर भाजपा को उनसे पल्ला भी झाडऩा पड़ा।

ऐसे जीती कांग्रेस
मई में हुए विधानसभा चुनाव में जिले की 8 में से छह सीटों पर जीती कांग्रेस इस बार ज्यादा उत्साहित थी। उत्तर कर्नाटक में अपने गठबंधन सहयोगी जद-एस का ज्यादा प्रभाव नहीं होने के बावजूद कांग्रेस को इससे मतों के धु्रवीकरण में मदद मिली।
बाहरी होने के बावजूद उग्रप्पा विभिन्न समुदायों के लोगों को लुभाने में कामयाब रहे लेकिन श्रीरामुलू सिर्फ नायक समुदाय के नेता के तौर पर ही अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करते रहे।

कांग्रेस ने जहां एकजुटता के साथ पूरी शक्ति झोंकी वहीं बल्लारी में भाजपा की गुटबाजी का असर भी भाजपा की संभावनाओं पर पड़ा। श्रीरामुलू और येड्डियूरप्पा के समर्थक नेताओं के बीच मनमुटाव के कारण मतों का धुव्रीकरण वैसा नहीं हुआ जैसा भाजपा समझ रही थी।
भाजपा ने कांग्रेस की तरह यहां पूरी शक्ति नहीं लगाई। इस सीट को जीतने के लिए कांग्रेस और जद-एस ने एकजुटता दिखाई और दोनों दलों के दिग्गजों ने साझा मंच से प्रचार भी किया।

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