निखिल कुमार
बेंगलूरु. मैसूरु रोड स्थित सैकड़ों वर्ष पुराना एक विशाल बरगद का पेड़ खतरे में है। यह पेड़ देश के सबसे बड़े और पुराने बरगद के पेड़ों में से एक माना जाता है। हैरिटेज ट्री का दर्जा प्राप्त यह पेड़ संरक्षित नहीं होने से नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।लगातार घटते भूजल-स्तर और बढ़ते प्रदूषण के कारण पेड़ की जड़ें बेहद कमजोर हो चुकी हंै। पेड़ की फैलती शाखाओं और झूलती जड़ों से परेशानी के कारण इन्हें जब-तब काट दिया जाता है।यहां से गुजरने वाले वाहनों से टकराकर पेड़ की शाखाओं को नुकसान होता है। इन्हीं सब वजहों से पेड़ के साथ 400 वर्ष पुराना इतिहास भी खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है।
हैरिटेज ट्री का दर्जा
प्रदेश सरकार और जैव विविधता बोर्ड ने इसे हैरिटेज ट्री का दर्जा दिया है। इसके बावजूद वन, बागवानी और पुरातत्व विभाग को ने इसकी सुध नहीं ली है। विशेषज्ञ इसे यूनेस्को का हैरिटेज टैग दिलाने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है।
पेड़ नहीं मानो पूरा जंगल ही है
यह विशालकाय पेड़ ऐसा लगता है मानो पूरा जंगल हो। फंगस के कारण पेड़ की मूल जड़ करीब 15 वर्ष पहले नष्ट हो चुकी है। कई दूसरी जटाएं अब जड़ का रूप ले चुकी हैं। इस कारण ये पेड़ आज भी बढ़ता जा रहा है। 3 एकड़ में फैले इसे पेड़ के 1000 से भी ज्यादा बरह यानी प्रॉप जड़ें (जमीन में घुसकर तने का रूप ले चुकी पेड़ की शाखाओं से निकली जड़ें, जिन्हें आमतौर पर जटाएं कहते हैं) हैं। दरअसल, बरगद के पेड़ की शाखाओं से जटाएं पानी की तलाश में नीचे जमीन की ओर बढ़ती हैं। वे बाद में जड़ के रूप में पेड़ को पानी और सहारा देने लगती है।
बागवानी विभाग के पास नहीं अधिकार
पेड़ की जड़ें और शाखाएं इस कदर फैल चुकी हैं कि 3 एकड़ जमीन भी कम पड़ रही है। चारदीवारी के बाहर तक फैली शाखाओं से यहां से गुजरने वाले वाहनों को परेशानी होती है। वाहनों से टकराकर अक्सर ये टूट जाती हैं या इन्हें काट दिया जाता है। बागवानी विभाग का कहना है कि वे इसे रोकने में असमर्थ हैं। कर्नाटक वृक्ष संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पेड़ को संरक्षित है। बागवानी विभाग पेड़ की देखभाल करता है, लेकिन शाखाएं काटने के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी है।
धूल फांक रहा प्रस्ताव
पेड़ के संरक्षण के लिए बागवानी विभाग ने गत वर्ष प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव भेजकर इसके आसपास की जमीन खरीदने की सिफारिश की थी। इससे पेड़ को बचाया जा सकेगा। पेड़ बढ़ सकेगा। लेकिन प्रस्ताव धूल फांक रहा है। स्थानीय निवासी हरीश ने बताया कि पेड़ के आस पास की जमीन की कीमत लगभग 25 लाख रुपए प्रति एकड़ है। लोग शायद ही अपनी जमीन देने को तैयार हों। पेड़ को बचाने के लिए कुछ नहीं किया गया है।
वर्षों से हो रही पूजा
पेड़ के पास एक मंदिर भी है। मंदिर के पुजारी मुनियप्पा ने बताया कि वे कई वर्षों से यहां पूजा कर रहे हैं। उनके पूर्वज भी मंदिर में पूजा करते थे। पेड़ की स्थिति बिगड़ती जा रही है। देखकर दुख होता है। इसे सुरक्षित करना आवश्यक है। फंगस लगने से पेड़ की मूल जड़ खराब होकर पूरी तरह नष्ट हो चुकी है।
अप्रेल-मई में लगता है मेला
स्थानीय लोगों का कहना है कि लंबे समय तक यह पेड़ प्राकृतिक वनस्पति का हिस्सा रहा। समय के साथ पेड़ की लोकप्रियता बढऩे से सरकार का ध्यान आकर्षित हुआ। कुछ दशक पहले इसे बागवानी विभाग को सौंपा गया। लोग इस पेड़ को शुरू से ही पूजनीय मानते हैं। हर वर्ष अप्रेल-मई में यहां मेले का आयोजन भी होता है।
फिल्मों की शूटिंग भी
यहां कई फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग भी हो चुकी है। बॉलीवुड की चर्चित फिल्म शोले का अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र पर फिल्माए गए गाने ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे की शूटिंग भी यहीं हुई थी। इसके अलावा भी कई स्थानीय व क्षेत्रीय फिल्मों व धारावाहिकों के दृश्य यहां फिल्माए गए हैं।