डेनमार्क और कनाडा में किए गए अध्ययन में पाया गया है कि टाइप ओ वाले लोगों के संक्रमित होने का खतरा कम है। बड़ी जटिलताएं विकसित होने या कोविड से मौत का खतरा भी औरों की तुलना में कम है। रक्त समूह ए और एबी वाले व्यक्ति बीमारी की चपेट में सबसे अधिक आ सकते हैं। हालांकि, प्रदेश के सभी चिकित्सक इस अध्ययन से पूरी तरह समह नहीं हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परषिद (आइसीएमआर) ने अब तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया है। इसलिए प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के इस ऑडिट में कई नए तथ्य सामने आने की संभावना है।
मानव संसाधन की कमी चुनौती
क्रिटिकल केयर सपोर्ट यूनिट के प्रमुख डॉ. त्रिलोक चंद्र ने बताया कि शहर व तालुक अस्पतालों से ऐसे रक्त समूह वाले मरीजों की जानकारी जुटाई जा रही है। रक्त जांच के कुछ आंकड़े पहले से उपलब्ध हैं लेकिन समीक्षा के लिए अपर्याप्त हैं। हालांकि, मानव संसाधन की कमी चुनौती है।
महत्वपूर्ण अंतर नहीं
प्रदेश में प्लाज्मा थेरेपी के प्रमुख व कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. विशाल राव के अनुसार प्लाज्मा प्रोग्राम के तहत पहले से रक्त समूह संबंधित कुछ डेटा हैं। प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि रक्त समूहों के परिणामों में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है।
डॉ. राव ने कहा कि एबी रक्त समूह के 12 कोविड मरीजों में मृत्यु दर 75 फीसदी रही है। वहीं रक्त समूह ए के 44 मरीजों में से करीब 16 मरीजों को बचाने में कामयाबी नहीं मिली। बी रक्त समूह के 78 मरीजों में से आधे की मौत हुई है जबकि रक्त समूह ओ के 88 मरीजों में से करीब 47 फीसदी ने उपचार के दौरान दम तोड़ा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावोत्पादकता (एफिकेसी) के कारण हो सकता है। बहुराष्ट्रीय अध्ययन का सही निहितार्थ यह हैं कि कुछ रक्त समूहों में कम एंटीजन होते हैं, जो कम प्रतिरक्षा को दर्शाता है।
ज्यादातर मरीज का ब्लड ग्रुप ओ
प्रदेश के सरकारी शोधकर्ताओं के अनुसार डेनमार्क और कनाडा के अध्ययन में टाइप ओ वाले लोगों में संक्रमण, जटिलताएं या मौत का खतरा कम होने की बात कही गई है। लेकिन प्रदेश के विक्टोरिया कोविड अस्पताल में छह हजार से ज्यादा कोविड मरीजों के रक्त की जांच हुई है। अस्पताल में उपचार करा चुके या उपचाराधीन ज्यादातर मरीजों का रक्त समूह ओ है।
टाइप एबी रक्त अत्यंत दुर्लभ
मणिपाल अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन सेवाओं के प्रमुख डॉ. सी. शिवराम के अनुसार देश में टाइप एबी रक्त अत्यंत दुर्लभ है। इसलिए क्षेत्रीय अंतर पर भी विचार की जरूरत है।