जब कोई आदमी ठीक काम करता है तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। गलत को गलत मानते हुए भी इंसान गलत किये जा रहा है, इसी कारण समस्याओं एवं अंधेरों के अम्बार लगे हैं। लेकिन ऐसा ही नहीं है, कुछ अच्छे लोग भी हैं, शायद उनकी अच्छाइयों के कारण ही जीवन बचा हुआ है।
आचार्य ने कहा कि जीवन के बारे में एक मजेदार बात यह है कि यदि आप सर्वश्रेष्ठ वस्तु से कुछ भी कम स्वीकार करने से इंकार करते हैं तो अकसर आप उसको प्राप्त कर ही लेते हैं। हमें वह परिवर्तन खुद में करना चाहिए जिसे हम संसार में देखना चाहते हैं। जरूरत है, हम दर्पण जैसा जीवन जीना सीखें। उन सभी वातायनों एवं खिड़कियों को बन्द कर दें जिनसे आने वाली गन्दी हवा इंसान को इंसान नहीं रहने देती।
उन अर्थहीन चाहों को लक्ष्मणरेखा दें जिनके अतिक्रमण ने इंसान की सूरत को ही नहीं, सीरत को भी बिगाड़ा है, उसके जीवन को संकट में डाला है। इसीलिये इंसान के व्यवहार में इंसान को देखा जा सके यही आदमी की तलाश है और इसी तलाश की वर्तमान संकटकालीन दौर में ज्यादा जरूरत है।