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बैंगलोर

जीएसएलवी की विफलता के बाद पीछे छूट गया था मानव मिशन, अब अंतर को भरने की चुनौती

वर्ष 2010 में भू-स्थैतिक प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के दो अभियानों में एक के बाद एक मिली विफलता ने भारतीय मानव मिशन को काफी पीछे धकेल दिया।

बैंगलोरSep 16, 2018 / 05:22 am

शंकर शर्मा

जीएसएलवी की विफलता के बाद पीछे छूट गया था मानव मिशन

जीएसएलवी की विफलता के बाद पीछे छूट गया था मानव मिशन, अब अंतर को भरने की चुनौती

बेंगलूरु. वर्ष 2010 में भू-स्थैतिक प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के दो अभियानों में एक के बाद एक मिली विफलता ने भारतीय मानव मिशन को काफी पीछे धकेल दिया। यहां शनिवार को 57 वें वांतरिक्ष चिकित्सा सम्मेलन में इसरो पर आयोजित एक विशेष सत्र के दौरान एयर वाइस मार्शल पंकज त्यागी (सेनि) ने कहा कि हालांकि, मानव मिशन की योजना पिछले दशक में ही बनी थी मगर जीएएसएलवी की विफलता से यह मिशन ठंडे बस्ते में चला गया।

एमएम श्रृंगेश स्मृति व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2006 में एक कू्र वाहन तैयार करने की योजना बनी थी जो दो से तीन अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने में सक्षम हो। उसे जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाता। तब केंद्र सरकार मानव अंतरिक्ष मिशन के हर पहलू के अध्ययन के लिए 95 करोड़ रुपए जारी भी किए। आज इसरो ने इस मिशन को पूरा करने के लिए जो अनुमान जाहिर किया और जो तैयारियां हैं उसमें काफी अंतर है। इस अंतर को कम करने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा।


उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (आइएएम) को पूरी तरह अलग छोड़ दिया गया जिसके चलते आज ये समस्या उत्पन्न हुई है। इसरो ने वर्ष 2007 में स्पेस रिकवरी एक्सपेरिमेंट (एसआरआइ) किया था और उसने दूसरे एक्सपेरिमेंट की योजना भी बनाई थी। लेकिन, वर्ष 2010 के बाद नहीं हुआ।


उन्होंने कहा कि आइएएम ने मानव मिशन को लेकर कई कार्यक्रम शुरु किए थे और यहां तक की इसरो के साथ करार भी हुआ था। लेकिन, जीएसएलवी की विफलता के बाद आइएएम को छोड़ दिया गया। आइएएम मानव मिशन की योजना तैयार करने से लेकर संसाधनों की आपूर्ति एवं उसे सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला संस्थान है। इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रबंधन समूह ने आइएएम से क्यों नहीं कहा कि वो इसरो के साथ चलते रहें।

प्रणालियों को मानव मिशन को ध्यान में रखकर उन्नत करते रहें। अब लांच प्लटेफार्म पर आकर उन्होंने गलतियां सुधारी हैं। लेकिन अब कई मोर्चों पर एक गैप बन गया है और मानव मिशन को समय पर पूरा करना है तो इन समस्याओं का हल करना पड़ेगा। यह संभव है और यह होगा। क्योंकि, आज एक मजबूत नेतृत्व के साथ तकनीकी योग्यता और क्षमता भी है। परंतु इसे समय पर पूरा करने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा। इस मिशन की सफलता के इसरो ने जो भी तकनीक विकसित किए हैं उसे आईएएम और एयरोस्पेस संस्थाओं के साथ साझा करना होगा।


उन्होंने कहा कि इसरो का आइएएम से हाथ छुड़ाने का कारण जीएसएलवी की विफलता थी। क्योंकि, उन्होंने सोचा कि अब उनके पास तो प्रक्षेपण यान है नहीं और इससे उनका मनोबल टूट गया। वे अलग होकर काम करने लगे और सबकुछ पीछे चला गया। अब आइएएम इस मिशन की सफलता के लिए हर संभव सहयोग करेगा और उनके साथ मिलकर काम करेगा। उन्होंने कहा कि आइएएम ने जो क्षमता विकसित की है उससे मानव मिशन 500 से 1000 करोड़ रुपए किफायती हो जाएगा। भविष्य में मानव मिशन को एक टिकाऊ कार्यक्रम बनाने के लिए और अधिक फंडिंग की आवश्यकता होगी।


यह एक या दो मानव मिशन कार्यक्रम नहीं होना चाहिए बल्कि इसकी शुरुआत हो तो इसे एक नियमित कार्यक्रम का रूप देना चाहिए। चीन ने वर्ष 2030 तक चांद पर बस्तियां बसाने की योजना बनाई है तो अमरीका मंगल पर मानव मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है। अगर भविष्य की अंतरिक्ष नीतियों में भारत को अपनी बात रखनी है या अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम रखना है तो उसे भी इन पहलुओं पर गौर करना होगा और मानव मिशन को आगे बढ़ाना होगा।

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