सूत्रों के अनुसार बेंगलूरु महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण (बीएमआरडीए) कार्यालय में हुई बैठक में तय हुआ कि आयोग को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की सौंपी जाएगी। नीति आयोग ने मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या द्वारा लिखे एक पत्र के बाद एक सदस्य को प्रदेश के दौरे पर भेजा है।
देश भर के महानगरों में यातायात कम करने की नीति आयोग की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए रेलवे विभाग ने बेंगलूरु के दो-तीन खंडों पर रेलवे लाइन दोहरीकरण की रिपोर्ट बनाई है। सारस्वत को यह भी कहा गया है कि वे भविष्य में शहर के विस्तार के मद्देनजर रखते हुए एक रिपोर्ट पेश करें।
सरकार की योजना पर उठ रहे सवाल
उधर, शहरी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी परियोजनाओं के मामलों में नीति आयोग तक तक बड़ी भूमिका नहीं निभा सकता, जब तक यह नीति न बन जाए कि रेलवे बोर्ड के लिए ऐसी परियोजना को स्वीकृति देना अनिवार्य है।
एक विशेष संजीव डी ने कहा कि नीति आयोग ने पिछले दस सालों से शहरी परिवहजन की आवश्यकताओं को समझने की कोशिश नहीं की है। खुद रेलवे मंत्रालय ऐसी परियोजनाओं को अटकाए रखता है, क्योंकि इनमें धन की अधिक आवश्कता है। न तो वे खुद अधोसंरचनात्मक विकास करेंगे और न ही दूसरों को करने देंगे।
अश्विन महेश ने कहा, साल २००९-१० में जब सिद्धरामय्या मुख्यमंत्री नहीं थे तब भी बेंगलूरु में उपनगरीय रेलव परियोजना के क्रियान्वयन के लिए योजना आयोग (अब नीति आयोग) से अनुरोध पत्र भेजा गया था। मगर आयोग ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
आधा-आधा खर्च करने की नीति हो
महेश ने कहा कि सरकार एक योजना यह भी बना रही है कि इस परियोजना को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) प्रारूप के तहत मूर्तरूप दिया जाए। मगर कोई भी संस्थान इसके लिए आगे नहीं आएगा, क्योंकि रेलवे के नियमों के अनुसार ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
कुछ राज्यों में उपनगरीय रेलवे परियोजना राज्य द्वारा ब्याज पर लिए गए धन से पूरी की गई है। वहां रेलवे मंत्रालय द्वारा परियोजना के लिए कोई आदेश पत्र नहीं दिए गए। जब सुरेश प्रभु रेलवे मंत्री थे, तब एक नियम लागू किया गया कि राज्य सरकार ऐसी परियोजनाओं पर लागत की ८० प्रतिशत रकम खर्च करे और केंद्र २० प्रतिशत का योगदान देगा। ऐसे में नीति आयोग को चाहिए कि वह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा ५०-५० प्रतिशत रकम खर्च करने की नीति बनाए।