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बैंगलोर

भाग्य भरोसे नहीं जा सकते अंतरिक्ष में, दुनिया भर के अंतरिक्ष यात्री बोले, असाधारण अनुभूति मगर चुनौतियां बड़ी

अंतरिक्षयात्री बनने का माद्दा होना चाहिए

बैंगलोरJan 24, 2020 / 05:52 pm

Saurabh Tiwari

भाग्य भरोसे नहीं जा सकते अंतरिक्ष में, दुनिया भर के अंतरिक्ष यात्री बोले, असाधारण अनुभूति मगर चुनौतियां बड़ी

भाग्य भरोसे नहीं जा सकते अंतरिक्ष में, दुनिया भर के अंतरिक्ष यात्री बोले, असाधारण अनुभूति मगर चुनौतियां बड़ी

बेंगलूरु. भारतीय मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयानÓ पर तीन दिवसीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विश्व के कुछ चुनिंदा अंतरिक्ष यात्रियों के साथ एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र का संचालन रवीश मल्होत्रा ने किया। सत्र के दौरान तीन बार अंतरिक्ष यात्रा पर गए और स्पेस में 675 घंटे गुजारने वाले फ्रांसीसी अंतरिक्षयात्री जनरल जेएफ क्लेरोय ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वे तीनों मिशनों में अलग-अलग आर्बिट, अलग-अलग झुकाव व अलग-अलग ऊंचाई पर गए। अंतरिक्ष यात्रा जितनी रोमांचक है, उतनी ही जोखिम भरी भी है।
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष में कोई भाग्य भरोसे (बाइ चांस) नहीं पहुंच सकता। वहां तभी पहुंच सकते हैं जब आप वहां पहुंचना चाहते हैं। अगर आप अंतरिक्ष यात्री बनना चाहते हैं तो पहले आपको गहराई से सोचना होगा कि आप सिर्फ और सिर्फ यहीं करना चाहते हैं। आप में अंतरिक्ष यात्री बनने का माद्दा होना चाहिए।
दूसरा आपको एक अच्छा ऑपरेटर और तकनीकी तौर पर अत्यंत कुशल होना पड़ेगा। मानसिक तौर पर मजबूती बेहद आवश्यक है। सामान्य परिस्थितियों में अथवा टीम के साथ हर तरह के तनाव झेलने में सक्षम होना पड़ेगा। अकेलेपन से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हों। आपकी सोच अत्यंत तीक्ष्ण हो। लेकिन, इन सबके साथ पहली शर्त वही है कि अंतरिक्ष यात्री बनने का ख्याल आपके भीतर से आना चाहिए। अंतरिक्ष यात्रियों का काम अत्यंत जोखिम भरा होता है। मानव अंतरिक्ष मिशन के इतिहास में चार कू्रज खो चुके हैं। लेकिन, यह दुर्भाग्य के कारण नहीं हुआ। यह मानवीय भूल की वजह से हुआ। निर्णय में गलती के कारण हुआ। अंतरिक्ष यात्रा के दौरान असाधारण अनुभूति होती है और भावनाएं चरम पर होती हैं। लेकिन, तकनीक की गहन जानकारी आवश्यक है। अलग-अलग तरह की मशीनों से पाला पड़ता है। एक छोटी सी छोटी भूल भी नहीं कर सकते। एक सेकेंड की गलती यानी 8 किलोमीटर की गलती।
इस सत्र के दौरान रूस, जर्मनी, अमरीका और यूएई के अंतरिक्ष यात्रियों ने भी अपने अनुभव साझा किए। सत्र के दौरान यह बात भी उभरकर आई कि भविष्य में मंगल मिशन की यात्रा पर जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों को और भी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित होने की जरूरत है। क्योंकि, मंगल यात्रा के दौरान ना तो धरती नजर आएगी और ना ही धरती से कोई सपोर्ट मिल पाएगा। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में धरती से कई कमांड भेजे जा सकते हैं, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को काफी सपोर्ट मिलता है। मंगल का सफर भी काफी लंबा होगा। इसमें दो से तीन साल का समय लगेगा। इतने दिनों के लिए भोजन सामग्री लेकर अंतरिक्ष यात्री नहीं जा सकते। ऐसे में अंतरिक्षयान में ही अनाज पैदा करने की तकनीक भी विकसित करनी होगी। मानसिक रूप से अकेलापन बर्दाश्त करना एक बड़ी चुनौती होगी।
फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री ने एक साथ दो कंसोर्टियम के दो यान भेजने की सलाह दी ताकि किसी एक यान के साथ आपात स्थिति पैदा हो तो दूसरे के साथ डॉक कर अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित लाया जा सके। भले ही वे एक-दूसरे को नहीं देख पाएंगे, लेकिन रेडियो फ्रीक्वेंसी पर एक-दूसरे से बात कर सकते हैं और आपात स्थिति में एक दूसरे की मदद भी। रवीश मल्होत्रा ने कहा कि अंतरिक्ष अन्वेषण सस्ता नहीं है। इसलिए विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग की जरूरत है। पिछले 20 साल से अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में मानव की मौजूदगी और निरंतर प्रयोग हो रहे हैं। इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

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