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बैंगलोर

जिद्दी बैक्टीरिया के खिलाफ कारगर हो सकेंगी मौजूदा एंटीबायोटिक

एंटीबायोटिक दवा को प्रवाहित करने की प्रकिया को ब्लॉक कर देंगे नव विकसित एंटीबॉडीएंटीबायोटिक दवाओं को बाहर निकाल दवा प्रतिरोधी नहीं हो पाएंगे रोगजनक जीवाणुआईआईएससी की नई खोज

बैंगलोरAug 16, 2021 / 11:47 am

Rajeev Mishra

जिद्दी बैक्टीरिया के खिलाफ कारगर हो सकेंगी मौजूदा एंटीबायोटिक

जिद्दी बैक्टीरिया के खिलाफ कारगर हो सकेंगी मौजूदा एंटीबायोटिक

बेंगलूरु.
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया तरीका ढूंढ निकाला है जिससे रोगजनक जीवाणु (बैक्टीरिया) एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी नहीं हो पाएंगे।
जीवाणु आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से मारे जाते हैं। एंटीबायोटिक दवाओं से सुरक्षा अथवा प्रतिरोध हासिल करने के लिए वे जिन तंत्रों का उपयोग करते हैं, उनमें से एक ‘इफ्लक्स’ है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं या यौगिकों को कोशिका के बाहर निकाल देते हैं। इसमें परिवहकों (ट्रांसपोर्टर) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है जो रोगजनक जीवाणुओं को ऐसा करने में सक्षम बनाते हैं।
आईआईएससी में मॉलिक्यूलर बायोफिजिक्स यूनिट (एमबीयू) के शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक दवाओं को बाहर निकालने से रोकने का नया तरीका खोजा है जिससे बैक्टीरिया इन दवा के प्रति प्रतिरोध हासिल नहीं कर पाएंगे। इससे मौजूदा दवाओं को एंटीबायोटिकरोधी बैक्टीरिया या सुपरबग के खिलाफ अधिक प्रभावी बनाने की सम्भावना बढ़ गई है।
दरअसल, वैज्ञानिकों ने बीकानेर स्थित राष्ट्रीय ऊँट अनुसंधान केंद्र के भारतीय ऊँटो में पाए जाने वाले एक विशिष्ट एंटीबॉडी का उपयोग कर इन परिवहकों को ब्लॉक करने में सफलता हासिल की। एमबीयू में सहायक प्रोफेसर अरविंद पेनमत्सा के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम ने प्रयोगशाला की स्थितियों में इसका प्रदर्शन किया है।
प्रोफेसर अरविंद ने बताया ‘बैक्टीरिया के लिए ‘इफ्लक्स’ प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। यह एंटीबायोटिक रोधी होने के लिए जीवाणुओं की प्रमुख रणनीतियों में से एक है। अणुओं का विकास कर इस प्रवाह को अवरुद्ध करने के दृष्टिकोण से अभी तक कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। चिकित्सीय तंत्र के रूप में ऐसे अणुओं को नहीं खोजा गया है। यदि हम कुछ एंटीबायोटिक दवाओं के प्रवाह में मदद करने वाले ट्रांसपोर्टरों को अवरुद्ध करने में सक्षम होते हैं तो वे दवाएं प्रभावोत्पादक होंगी। कुछ अर्थों में, हम उपलब्ध एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावकारिता को बढ़ा सकते हैं। हमने जो एफ्लक्स अवरोधक का विकास किया है उसमें पाया है कि इसका चिकित्सकीय लाभ है।’
दरअसल, बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक रोधी बनाने में मददगार परिवहकों को अवरुद्ध करने के लिए अवरोधकों का विकास तभी संभव था जब उनकी कोशिका झिल्ली की जटिल आणविक संरचना को समझा जा सके। शोधकर्ताओं ने एक ऐसे ही परिवहक, नार्क (एनओआरसी) की आणविक संरचना को समझा जो आमतौर पर त्वचा या ऊपरी श्वसन मार्ग में पाए जाते हैं। हालांकि, इन परिवहकों की आकृति अथवा संरचनाएं बदलती रहती हैं लेकिन भारतीय ऊँट के विशिष्ट एंटीबॉडी ने इसके साथ एक ऐसा बंधन सृजित किया जो बॉटल-कॉर्क की तरह इन्हें बंद कर दिया। इसके बाद ये परिवहक एंटीबायोटिक दवाओं या योगिकों (जीवाणु रोधी दवाओं) के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं कर पाए। वैज्ञानिकों का मानना है कि बैक्टीरिया संक्रमण के इलाज में यह नई अंतर्दृष्टि काफी कारगर साबित होगी।

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