डॉ. मंजूनाथ ने कहा कि देश में हर वर्ष 15 लाख से ज्यादा लोग ब्रेन स्ट्रोक से प्रभावित होते हैं। समय रहते उचित उपचार मिले तो ज्यादातर मरीजों को ठीक किया जा सकता है, लेकिन जयंती की तरह स्ट्रोक के 10 फीसदी से भी कम मरीज गोल्डन आवर में अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं। 55 की आयु के बाद पांच में से एक महिला और छह में से एक पुरुष को बे्रन स्ट्रोक का खतरा रहता है।
ब्रेन्स अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. एनके वेंकटरमन बताते हैं कि स्ट्रोक आने के तीन-चार घंटे में मरीज को अस्पताल पहुंचाना जरूरी है। देरी होने पर लकवे की पूरी संभावना रहती है।
राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) में न्यूरोलॉजी विभाग के अडिशनल प्रोफेसर डॉ. पीआर श्रीजितेश ने कहा कि चार में से एक व्यक्ति अपने जीवन में स्ट्रोक का शिकार होता है। स्ट्रोक के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आधुनिक जीवनशैली, मधुमेह, धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, मोटापा और अत्याधिक कोलेस्ट्रॉल प्रमुख कारण हैं। हालांकि करीब 20 फीसदी मामलों में कारण अज्ञात होते हैं।
रोजाना 40 लोगों को ब्रेन स्ट्रोक
निम्हांस के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक एक लाख में से 150 से ज्यादा लोग ब्रेन स्ट्रोक की चपेट में आ रहे हैं। 10-15 फीसदी मरीजों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले हो जाती है। हर रोज शहर में कम से कम 40 लोगों को ब्रेन स्ट्रोक होता है। 80 फीसदी मामलों में ब्रेन स्ट्रोक का कारण मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिकाओं में अवरोध होता है। धमनियों में चर्बी की मात्रा बढऩे से वे पतली हो जाती हैं। देश भर में ब्रेन स्ट्रोक नि:शक्तता के मुख्य कारणों में से एक है।