वर्षायोग के दौरान पर्यावरण, भोजन व जल इत्यादि में हानिकारक बैक्टीरिया की तादाद स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। दूसरी ओर इस मौसम में हमारी जठराग्नि यानी पाचन शक्ति भी मंद पड़ जाती है। इसलिए धार्मिक अनुष्ठान व आध्यात्मिक प्रयोजन के साथ-साथ चातुर्मास में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध-सात्विक भोजन, अल्पाहार एवं व्रत-उपवास का पालन करना अत्यंत लाभकारी है।
चातुर्मास के चार महीनों के दौरान जैन मुनि किसी स्थान-विशेष पर ठहरकर उपवास, मौन-व्रत, ध्यान-साधना, एकांतवास और नवधाभक्ति करते हैं। ‘उपवासÓ परमात्मा के निकट पहुंचने की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी शुरुआत चातुर्मास के दौरान हरेक साधक अपने सबसे समीपवर्ती स्थूल-घटक भोजन पर विजय पाकर करता है।
दरअसल, व्रत-उपवास मन की चंचलता को साधते हुए आत्मनिष्ठ होने की पद्धति है। मन की चंचलता क्षीण होते ही साधक को परमात्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है।