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बैंगलोर

दूसरा चंद्र मिशन पूरा नहीं करने की रह गई कसक

पहले चंद्र मिशन के नायक अन्नादुरै ने इसरो को कहा अलविदा, मंगलयान सहित कई महत्वपूर्ण मिशनों में निभाई अग्रणी भूमिका

बैंगलोरJul 31, 2018 / 08:58 pm

Rajeev Mishra

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दूसरा चंद्र मिशन पूरा नहीं करने की रह गई कसक

बेंगलूरु. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विशिष्ट वैज्ञानिक और पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 के परियोजना निदेशक एम.अन्नादुरै को दूसरा चंद्र मिशन पूरा नहीं कर पाने की कसक रह गई। वे मंलवार को यू.आर राव उपग्रह केंद्र के निदेशक पद से सेवानिवृत हो गए।
पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में अन्नादुरै ने कहा कि चंद्रयान-2 परियोजना उनके दिल के बेहद करीब थी। यह परियोजना अब पूरी होने वाली भी है। मिशन लगभग तैयार है और लांच होने के करीब है। अगर उन्हें मौका दिया जाता तो वे इस मिशन को पूरा करना पसंद करते। वे अब भी कहेंगे कि अगर उन्हें मौका मिलेगा तो वे इस परियोजना को पूरा करना चाहेंगे। दरअसल, एम अन्नादुरै ही दूसरे चंद्र मिशन के भी निदेशक थे। चंद्रयान-2 की डिजाइनिंग, विकास और परीक्षण उन्हीं के देख-रेख में हुआ। उम्मीद की जा रही थी कि अन्नादुरै के अतुलनीय योगदानों को देखते हुए उन्हें एक साल के सेवा विस्तार मिल जाएगा जो नहीं हुआ। अन्नादुरै ने चंद्र मिशन के अलावा मंगल मिशन, इनसैट संचार उपग्रहों और नौवहन उपग्रहों के अलावा कई महत्वपूर्ण मिशनों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अप्रेल 2015 में इसरो उपग्रह केंद्र (अब यू.आर. राव उपग्रह केंद्र) के निदेशक का पद संभाला था।
चांद हमारे दायरे से बाहर नहीं
अन्नादुरै ने कहा कि इसरो के साथ लगभग 36 साल का सफर शानदार और संतोषजनक रहा। उन्हें इसरो में एक उद्देश्यपूर्ण अवसर मिला और संगठन में समय के बहाव के साथ चलते रहे। इस दौरान इसरो ने ऊंचाइयों को छुआ तो उनका अपना विकास भी काफी हुआ। शैक्षणिक संगठनों के साथ उनका लगाव रहा। उन्हें खुशी है कि इसरो परिसर के बाहर देश की अंतरिक्ष क्षमता से लोगों को अवगत कराने का मौका मिला। देश की क्षमता असीम है। अगर अवसर मिलता है तो हमारी काबिलियत इतनी है कि कुछ भी कर सकते हैं। चांद हमारे दायरे से बाहर नहीं है।
चांद पर पानी की खोज यादगार लम्हा
अन्नादुरै ने कहा कि इसरो में उनका सबसे यादगार लम्हा चंद्रयान-1 द्वारा चांद के सतह पर पानी की खोज करना रहा। वे उस पल को हमेशा याद रखेंगे जब हमारे चंद्रयान ने चांद की धरती पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया। चंद्रयान-1 को बेहद कम बजट में एक छोटी सी टीम ने तैयार किया था। हमारा मिशन भले ही वह विश्व का 69 वां चंद्र मिशन था लेकिन उसकी उपलब्धियों ने पूरी दुनिया को चौंका दिया। चंद्र मिशन से विश्व में हमारी एक अलग पहचान और साख बनी। मिशन की उपलब्धियों को न सिर्फ सराहा गया बल्कि उसे मान्यता मिली।
इसरो निभाए अग्रणी भूमिका
उन्होंने कहा कि वे जब वर्ष 1982 में इसरो ज्वाइन किए तब मुश्किल से चार वर्षों में एक उपग्रह लांच होता था। वह भी एक सामान्य उपग्रह। लेकिन, आज हम चंद्रमिशन और मंगल मिशन के बारे में सोच रहे हैं। उच्च श्रेणी के उपग्रह बना रहे हैं। इतना ही नहीं अब हर महीने एक मिशन लांच करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं क्योंकि उपग्रहों की मांग काफी तेजी से बढ़ी है। इस बड़ी मांग की पूर्ति इसरो अकेले नहीं कर सकता। इसलिए निजी क्षेत्र से अतिरिक्त सहयोग लेने की योजना है। वे उपग्रहों के निर्माण को पूरी तरह निजी हाथों में देने के पक्ष में नहीं है। बल्कि इसरो की देखरेख में निजी क्षेत्र अगर उपग्रह तैयार करे तो इसका लाभ देश को मिलेगा। वे भविष्य में इसरो को वैश्विक अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अग्रणी भूमिका निभाते देखना चाहते हैं। आने वाले दिनों में कई नए देश अंतरिक्ष कार्यक्रमों को अपनाएंगे। तब बड़े पैमाने पर विश्व को प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता होगी। इसरो इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। देश में ही इसरो परिसर के बाहर युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित कर पेशेवर तैयार किए जा सकते हैं जिनकी आवश्यकता अंतरिक्ष के क्षेत्र में उभरते देशों को होगी।
युवा अपनी योग्यता को पहचान बनाएं
उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि अगर वे कुछ करना चाहते हैं तो देश अवसर प्रदान करने को तैयार हैं। अगर वे इस अवसर का लाभ उठाते हैं तो उनकी काबिलियत को देश पहचानेगा। उनकी योग्यता देश में पहचानी जाएगी। उनकी अपनी जिंदगी भी कुछ ऐसा ही संदेश देती है।

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