बता दें कि इस मुद्दे पर कर्नाटक भाजपा ने कहा है कि यह पार्टी की इच्छा नहीं है। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त जस्टिस एन संतोष हेगड़े ने भी नाम बदलने के सुझाव की आलोचना की है। उन्होंने आगाह किया कि इस कदम से देश में ‘अन्य समूहों के भीतर’ अवांछित गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं।
बता दें कि नम: नाम के याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में यह मांग रखी थी। बहरहाल, देश का आधिकारिक नाम सिर्फ भारत रखने की मांग पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सरकार के पास अपनी बात रखने को कहा। साथ ही कहा कि इस तरह के नीतिगत फैसले लेना अदालत का काम नहीं है।
जबकि याचिकाकर्ता की दलील थी कि देश का आधिकारिक नाम भारत कर देने से लोगों में राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना का संचार होगा। अंग्रेजों के रखे गए इंडिया नाम का इस्तेमाल अब बंद हो जाना चाहिए।
यह नाम गुलामी का प्रतीक
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में देश का संविधान बनाने वाली संविधान सभा में हुई बहस का हवाला देते हुए बताया था कि संविधान सभा के कई सदस्य देश का नाम भारत रखे जाने के पक्ष में थे। उनका कहना था कि लंबे संघर्ष से मिली आजादी के बाद अंग्रेजों के रखे नाम से मुक्ति पा लेनी चाहिए। यह भी एक तरह से गुलामी का प्रतीक है।
उन सदस्यों ने भारत के अलावा वैकल्पिक नाम के तौर पर भारतभूमि, भारतवर्ष, हिंद, हिंदुस्तान जैसे नाम भी सुझाए थे लेकिन तब इस बात पर सहमति नहीं बन पाई। संविधान में भारत का परिचय ‘इंडिया, दैट इज़ भारत यानी ‘इंडिया, जो भारत भी है’ लिख दिया गया।