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बैंगलोर

ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ी निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या

– देहातों में बदली स्कूली शिक्षा की तस्वीर- तीन वर्ष पहले 10.8 फीसदी के मुकाबले अब 20 फीसदी से ज्यादा ले रहे ट्यूशन- कर्नाटक : महामारी के कारण स्कूल बंद होने का असर

बैंगलोरNov 23, 2021 / 10:07 am

Nikhil Kumar

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बेंगलूरु. कोरोना महामारी के कारण करीब 18 माह तक स्कूल बंद रहने के कारण प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में नया ट्रेंड सामने आया है। निजी ट्यूशन लेने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है। गत तीन साल में तकरीबन दोगुनी हो गई है। बच्चों में ट्यूशन के प्रति रुझान बढऩे की एक वजह कोरोना संक्रमण भी है। सक्रमण के दौरान बच्चों का स्कूल जाना बंद हुआ तो ट्यूशन पर निर्भरता बढ़ गई।

शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए ग्रामीण भारत में आयोजित वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसइआर) 2021 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में पढऩे वाले 20.5 फीसदी छात्रों ने निजी ट्यूशन के लिए नामांकन किया। एएसइआर 2018 रिपोर्ट की तुलना में यह 9.8 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ष 2018 में 10.8 फीसदी बच्चे ही निजी ट्यूशन पर निर्भर थे। वर्ष 2020 में केवल 8.4 फीसदी छात्रों ने निजी ट्यूशन लिए।

शिक्षा विशेषज्ञ निरंजनाराध्याय वी.पी. के अनुसार प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय लगभग 18 महीनों से महामारी के कारण बंद थे। ट्यूशन केंद्रों की मांग में वृद्धि अच्छे संकेत नहीं हैं। कर्नाटक ही नहीं देश के अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ऐसी ही है। ग्रामीण भारत में करीब 40 फीसदी छात्र निजी ट्यूशन क्लास पर निर्भर हैं। ये गत तीन वर्षों में 11 फीसदी की बढ़ोतरी है। एएसइआर रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में ग्रामीण भारत में निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या 28.6 फीसदी थी। लेकिन वर्ष 2021 में यह बढ़कर 40 फीसदी हो गई। वर्ष 2020 में निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों की संख्या 32.5 फीसदी थी। निजी ट्यूशन लेने वाले का अनुपात केरल को छोड़कर पूरे देश में बढ़ा है।

एएसइआर के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि भी हुई है। 2021 तक 6 से 14 वर्ष की आयु के 77.7 फीसदी छात्र सरकारी स्कूलों में नामांकित थे। 78.6 फीसदी लड़कियों और 76.8 फीसदी लड़कों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया था। वर्ष 2020 में 68.6 फीसदी ग्रामीण छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर ऋषिकेश बी.एस. ने कहा कि सरकारी स्कूलों में विद्यागम कार्यक्रम के माध्यम से महामारी के दौरान शिक्षा विभाग बच्चों तक पहुंचने में कामयाब रहा। निजी स्कूलों की तुलना में अधिक प्रवेश प्राप्त करने में मदद मिली। नामांकन में वृद्धि का एक अन्य कारण कोरोना महामारी जनित वित्तीय संकट के कारण परिवारों द्वारा निजी स्कूल की फीस का भुगतान करने में असमर्थता थी।

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