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बैंगलोर

कोडुगू में कॉफी उत्पादन में भारी गिरावट

मलनाड तथा तटीय कर्नाटक में हुई अप्रत्याशित बारिश के कारण अधिकतर कॉफी की फसल तहस-नहस होने से इस वर्ष राज्य में कॉफी उत्पादन में 40 फीसदी भारी गिरावट की संभावना है।

बैंगलोरAug 25, 2018 / 04:58 am

शंकर शर्मा

कोडुगू में कॉफी उत्पादन में भारी गिरावट

कोडुगू में कॉफी उत्पादन में भारी गिरावट

बेंगलूरु. मलनाड तथा तटीय कर्नाटक में हुई अप्रत्याशित बारिश के कारण अधिकतर कॉफी की फसल तहस-नहस होने से इस वर्ष राज्य में कॉफी उत्पादन में 40 फीसदी भारी गिरावट की संभावना है। कोडुगू चिक्कमगलूरु तथा हासन जिले कॉफी उत्पादन के लिए मशहूर हैं।
कोड्गु जिले में सैकड़ों एकड़ कॉफी प्लांटेशन जलमग्न हो गया है। कई जगह पर भूस्खलन के कारण कॉफी प्लांटेशन को भारी नुकसान पहुंचा है। देश में उत्पादित 3,50,400 मीट्रिक टन में से 80 फीसदी कॉफी का निर्यात होता है।


कर्नाटक में 2 लाख 22 हजार टन उत्पादन होता है। अकेले कोडुगू जिले में 1 लाख 33 हजार, चिक्कमगलूरु जिले में 84 हजार तथा हासन जिले में 34 हजार मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन होता है। कर्नाटक की 45 फीसदी कॉफी का उत्पादन कोडुगू जिले में होता है। लेकिन इस बार इतना उत्पादन संभव नहीं होने से निर्यात में भी भारी गिरावट निश्चित है। कोडुगू कृषि विभाग के सूत्रों के मुताबिक इस वर्ष जिले में 55 हजार मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन कम होने के आसार नजर आ रहे हैं।


कॉफी की फसल के लिए 80 इंच बारिश पर्याप्त है लेकिन कोडुगू जिले में इस बार 200 इंच से अधिक बारिश होने के कारण कॉफी की फसल को भारी नुकसान हुआ है। भारी बारिश से कॉफी के पौधों को विभिन्न रोगों का संक्रमण हो गया है।


कोडुगू, चिक्कमगलूर, हासन में कार्यरत दूसरे राज्यों के 50 हजार से अधिक मजदूरों का जीवन कठिन हो गया है। कॉफी प्लांटेशन तहस-नहस होने से मजदूरों के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगा है।

बाढ़ प्रभावित 30 फीसदी क्षेत्र में दो दशक तक कॉफी उत्पादन संभव नहीं: भोजेगौड़ा
भारतीय कॉफी बोर्ड के अध्यक्ष भोजेगौड़ा ने कहा कि हासन व कोडुगू जिले की कुछ पहाड़ी ढलानों पर भारी बारिश व भू-स्खलन के कारण हुई बरबादी के कारण अगले दो दशक तक कॉफी का उत्पादन संभव नहीं हो पाएगा। उन्होंने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं से कहा कि कोडुगू जिले के मडिकेरी, कुशालनगर, विराजपेट, सोमवारपेट तथा हासन जिले के सकलेशपुर तालुक में विभिन्न स्थानों पर करीब 30 फीसदी बागानों वाली पहाड़ी ढलानों पर भारी भू-स्खलन हुआ, जिसके चलते अगले 20-25 साल तक वहां काफी उत्पादन नहीं हो सकेगा।

मडिकेरी व सोमवारपेट तालुक के जोड़ुपाला, मक्कंदूर, मुकुड़क्लु, एल्मेत्तालु, तंतीपाला, मदेनाडु, अरेकल्लु, सकलेशपुर तालुक के इडनल्ली, पट्ला, चावली तथा मायानूरु सहित अनेक स्थानों पर भारी भू-स्खलन हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि जमीन धंसने और मिट्टी की ऊपरी परत पूरी तरह से बाढ़ के पानी में बहने से यहां पर दोबारा कॉफी पैदा करने लायक वातावरण बनने में 20 से 25 साल लगेंगे। भारी बारिश से कॉफी के पौधों पर लगे 80 फीसदी कॉफी बींस झड़ गए हैं। उन्होंने बताया कि कॉफी बोर्ड के विस्तार केंद्र के अधिकारियों ने पहले ही बाढ़ प्रभावित इलाकों में जाकर नुकसान का आकलन शुरू कर दिया है। वास्तविक रिपोर्ट तैयार करने के लिए विभिन्न स्थानों पर 20 से अधिक दलों को भेजा गया है। बाढ़ के कारण विभिन्न प्रजातियों के वृक्ष गिर गए हैं और काली मिर्च की फसलें तबाह हो गई हैं।


उन्होंने कहा कि नुकसान की रिपोर्ट तैयार करना कॉफी बोर्ड के अधिकारियों के लिए संभव नहीं है बल्कि इस कार्य में राजस्व व बागवानी विभाग के अधिकारियों की भूमिका अहम है। इन विभागों के अधिकारियों के साथ मिलकर कॉफी बोर्ड के अधिकारी भी नुकसान के आंकड़े जुटाने का काम कर रहे हैं।


उन्होंने कहा कि एनडीआरएफ के तहत प्रति एकड़ में काफी की फसल नष्ट होने पर 9 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाता है। लेकिन कोडुगू में पूरी फसलें ही चौपट होने के कारण मुआवजे की राशि बढऩे की उम्मीद है। यह सब कुछ केंद्र व राज्य सरकार के समन्वय पर निर्भर करेगा।

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