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बैंगलोर

चौदह साल की सजा काटने के बाद बना डॉक्टर

कलबुर्गी के सुभाष पाटिल ने पेश की अद्भूत मिसाल

बैंगलोरFeb 16, 2020 / 11:07 am

Rajeev Mishra

चौदह साल की सजा काटने के बाद बना डॉक्टर

चौदह साल की सजा काटने के बाद बना डॉक्टर

बेंगलूरु.
कलबुर्गी के डॉ सुभाष पाटिल ने समाज के सामने के एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसकी चौतरफा प्रशंसा हो रही है। हत्या के आरोप में 14 साल जेल की सजा काटने के बाद डॉक्टर बनकर पाटिल जिंदगी के असली मकसद हासिल किया है।
कहते हैं कि, अगर ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। बस इरादे पक्के हों और मेहनत मुकम्मल। पाटिल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कलबुर्गी जिला स्थित अफजलपुर तालुक के सुभाष पाटिल (40) ने वर्ष 1997 में एमबीबीएस में नामांकन कराया था। पढ़ाई के दौरान ही हत्या के एक मामले में उन्हें जेल की सजा हुई और वे वर्ष 2002 में जेल भेज दिए गए। सुभाष पाटिल कहते हैं ‘ मैंने जेल की ओपीडी में काम किया। वर्ष 2016 में मुझे आचरण के चलते जेल से रिहा कर दिया गया। मैंने वर्ष 2019 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली।Ó इस महीने के शुरू में पाटिल ने एमबीबीएस पाठ्यक्रम की डिग्री प्राप्त करने के लिए एक साल की अनिवार्य इंटर्नशिप पूरी कर ली। जेल में रहने के बावजूद अपने बचपन के सपने को कभी नहीं भुला और पढ़ाई पूरी करने होने बाद काफी सुखद महसूस कर रहे हैं।
ये था मामला
दरअसल, वर्ष 2002 में जब पुलिस ने हत्या के एक मामले में पाटिल को गिरफ्तार किया। वर्ष 2006 में एक अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। जानकारी के मुताबिक नवम्बर 2002 में अशोक गुत्तेदार नामक एक ठेकेदार की हत्या हुई। उसी हत्या के आरोप में पाटिल को गिरफ्तार किया गया। उस समय वे कलबुर्गी (तब गुलबर्गा) के महादेवप्पा रामपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र थे। जांच से पता चला कि पाटिल का गुत्तेदार की पत्नी पद्मावती के साथ संबंध था और उसी की मदद से उसकी हत्या कर दी गई। इस मामले में पद्मावती और पाटिल दोनों को गिरफ्तार किया गया।
जेल में सपने चढ़े परवान
सुभाष पाटिल और पद्मावती दोनों को 15 फरवरी, 2006 को एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों ने तब सजा को खत्म करने के लिए उच्च न्यायालय में अपील दायर की। लेकिन, अदालत ने उम्रकैद की सजा को बरकरार रखी। हालांकि, आजीवन कारावास की सजा के दौरान जेल में रहते सुभाष के सपने परवान चढ़े। उन्होंने 2007 में पत्रकारिता में अपना डिप्लोमा पूरा किया और 2010 में कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए किया।
जेल छूटे और अब डॉक्टर पाटिल
जेल में रहते हुए जहां ओपीडी में काम किया वहीं, उन्होंने सेंट्रल जेल अस्पताल में डॉक्टरों की सहायता भी की। वर्ष 2008 में टीबी प्रभावित कैदियों के इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया था। अच्छे व्यवहार के कारण 2016 में उन्हें रिहा कर दिया गया। वर्ष 2016 में उन्होंने राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से एमबीबीएस जारी रखने की अनुमति मांगी और विश्वविद्यालय ने कानूनी राय प्राप्त करने के बाद उन्हें मंजूरी दे दी। जेल से बाहर आकर 2019 में उन्होंने अपना एमबीबीएस पूरा किया।अब वे कलबुर्गी के बसवेश्वर अस्पताल में काम कर रहे हैं। उनके पास कर्नाटक मेडिकल काउंसिल का पंजीकरण प्रमाणपत्र है।

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