हालांकि अन्य जीव-जंतुओं के जीवन में भी दुख-दर्द होते ही हैं, जब-तब शारीरिक पीड़ाओं से भी वे सब गुजरते हैं, पर एक मनुष्य ही है जो आए दिन कराहता, रोता रहता है। अस्पतालों, हकीमों के चक्कर लगा कर भी वह बीमार ही होता जाता है। इसकी एक बड़ी वजह प्रकृति से बनती उसकी दूरी भी है।
उन्होंने कहा कि सभी यह मानकर चलें कि यह बीमारी मानव जाति को एक नई दिशा में ले चलने के लिए प्रकृति की ओर से एक निर्देश प्रदान कर रही है। हमें भी अपने आप को आध्यात्मिक और धार्मिक रूप से मजबूत बनाते हुए इस अदृश्य शत्रु को परास्त करना है। हर एक महामारी का, हर संकट का एक समय होता है और यह धीरे-धीरे व्यतीत हो जाता है।