कर्नाटक में भाजपा के लिए गले की फांस बन गया उपमुख्यमंत्री पद का सियासी अस्त्र
राज्य में पहले से ही तीन-तीन उपमुख्यमंत्री हैं लेकिन अब भाजपा पर कम से कम दो और उपमुख्यमंत्री बनाने का दबाव है।
यहां नारे लगाए तो कार्रवाई तय
बेंगलूरु. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद साल भर तक सत्ता से दूर रही भाजपा ने सत्ता में आने के बाद उपमुख्यमंत्री पद को सियासी अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया था लेकिन अब वही उसके गले की फांस बन गई है। राज्य में पहले से ही तीन-तीन उपमुख्यमंत्री हैं लेकिन अब भाजपा पर कम से कम दो और उपमुख्यमंत्री बनाने का दबाव है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि उपमुख्यमंत्री पदों को लेकर फंसे पेंच के कारण विधानसभा उपचुनाव में भारी जीत के बावजूद मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हो रही है। उपचुनाव में 15 में से 1२ सीटें जीतने के बाद भाजपा को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल हो चुका है लेकिन राजनीतिक मुश्किलें कम नहीं हुई हैं।
उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर जीते उम्मीदवारों में से 11 ऐसे हैं जो जुलाई में एचडी कुमारस्वामी सरकार के पतन से पहले कांग्रेस और जद-एस छोड़कर आए थे। उस समय गठबंधन सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन विधायकों को भाजपा ने सत्ता में आने पर मंत्री बनाने का वादा किया था। साथ ही गठबंधन सरकार के पतन की व्यूह रचना करने वाले दो नेताओं- रमेश जारकीहोली और एएच विश्वनाथ को उपमुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दिया गया था। इसे ही लेकर पेंच फंस गया है। येडियूरप्पा वादे के मुताबिक चुनाव में जीते सभी ११ दल-बदल करने वाले नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात कह रहे हैं लेकिन ओहदे को लेकर मामला उलझ गया है। उपचुनाव में जीते जारकीहोली को वादे के मुताबिक उपमुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे हैं जबकि चुनाव हारने वाले विश्वनाथ को भी उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए दल-बदल करने वाले अन्य नेता लॉबिंग कर रहे हैं। दल-बदल करने वाले 17 नेताओं ने उपचुनाव के बाद बैठक कर अपनी एकजुटता का संदेश भी दिया। इसके बाद ही उपमुख्यमंत्री पदों को लेकर भाजपा में संशय भी बढ़ा है।
बताया जाता है कि येडियूरप्पा उपमुख्यमंत्री का खत्म किए जाने के पक्ष में हैं ताकि पार्टी में नाराजगी नहीं बढ़े। हालांकि, पार्टी आलाकमान ने अभी इस पर सहमति नहीं जताई है। येडियूरप्पा किसी नेता को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्षधर नहीं थे लेकिन आलाकमान के निर्देश पर तीन नेताओं को उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाना पड़ा। राजनीतिक हलकों में येडियूरप्पा की इच्छा के विपरीत तीन-तीन उपमुख्यमंत्री बनाने की पीछे भाजपा की अंदरुनी खींचतान को भी कारक माना जाता रहा है। येडियूरप्पा और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के खेमे के बीच परोक्ष खींचतान छिपा नहीं है।
येडियूरप्पा के करीबी नेताओं का कहना है कि या तो आलाकमान दो और उपमुख्यमंत्री बनाने की अनुमति दे अथवा इस पद को ही खत्म कर दिया जाए। अगर आलाकमान दो और उपमुख्यमंत्री बनाने को मंजूरी देता है तो सभी प्रमुख जातियों को प्रतिनिधित्व मिल जाएगा। अभी वोक्कालिगा, लिंगायत और अनुसूचित जाति से एक-एक उपमुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं, जिसमें भाजपा की अच्छी पैठ मानी जाती है। अगर दो नए उपमुख्यमंत्री बनाए जाते हैं तो उनमें से एक कुरुबा और दूसरा अनुसूचित जनजाति समुदाय से बनाए जाने का प्रस्ताव है। राजनीतिक तौर पर प्रभावी वोक्कालिगा और लिंगायत के बाद राज्य में कुरुबा तीसरी बड़ी जाति है। कुरुबा समुदाय में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या की वजह से कांग्रेस की अच्छी पकड़ मानी जाती है। नए राजनीतिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रही भाजपा उपमुख्यमंत्री पदों से अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है लेकिन पुराने नेताओं की दावेदारी के कारण मुश्किल हो रही है। अगर दूसरे दलों से आए दो नेताओं को उपमुख्यमंत्री बनाया जाता है तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जो ६-८ बार विधायक रह चुके हैं उनमें नाराजगी बढ़ सकती है। इसलिए येडियूरप्पा खेमा चाहता है कि उपमुख्यमंत्री का पद ही खत्म हो जाए। अब भाजपा आलाकमान ही तय करेगा कि राज्य में उपमुख्यमंत्रियों की संख्या बढ़कर पांच होगी या मौजूदा तीनों उपमुख्यमंत्रियों की विदाई होगी।
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