मोक्ष की अभिलाषा होना संवेग है-साध्वी सुधाकंवर
मोक्ष की अभिलाषा होना संवेग है-साध्वी सुधाकंवर
बेंगलूरु. शहर में हनुमंतनगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी सुधाकंवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए उत्तराध्ययन सूत्र के 29 वें अध्ययन में संवेग की चर्चा करते हुए बताया कि संवेग से जीव अनुत्तर धर्म श्रद्धा को प्राप्त करता है। अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षय करता है और दर्शन विशुद्धि करके उसी भव में या तीसरे भव में अवश्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा कि मोक्ष के प्रति तीव्र अभिलाषा का होना संवेग है। वेग तीन प्रकार का होता है – उद्वेग, आवेग और संवेग। संवेग के जागृत होते ही आत्मा मोक्ष मार्ग की तरफ अग्रसर हो जाती है। संवेग तीन प्रकार का है-मन संवेग अर्थात मन से शुभ चिंतन करना, वचन संवेग अर्थात मधुर वचन बोलना, काया संवेग अर्थात देव गुरु धर्म की सेवा करना और दुखियों के दुख को दूर करने में सहयोगी बनना। यह सम्यकत्व के लक्षणों में से दूसरा लक्षण है। साध्वी सुयशा ने कहा कि रोते-रोते जन्म लेना कोई दुर्भाग्य नहीं है परंतु रोते-रोते जीना और रोते-रोते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाना मानव जाति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। आज मनुष्य समाज की विडंबना है कि हमारा जीवन दूसरों से संचालित होता है, हमारी हर क्रिया यहां तक की हमारी भावनाएं भी दूसरों पर निर्भर है। अगर जीवन में आध्यात्मिकता के परम सोपान को पाना है तो अपने जीवन के मालिक स्वयं बनना होगा। हमारे जीवन के मौलिक निर्माता हम स्वयं हैं तो हम स्वयं अपने जीवन के जौहरी बने। बाह्य और अभ्यंतर जगत से स्वतंत्र बने, पराधीन ना बने तो ही हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है। धर्मसभा का संचालन करते हुए अध्यक्ष कल्याण बुरड़ ने कहा कि 5 अगस्त को साध्वी सुधाकंवर के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में सजोड़े जाप का आयोजन किया जा रहा है एवं 6, 7 व 8 अगस्त को आचार्य आनंद ऋषि की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में सामूहिक तेले तप का आयोजन किया जा रहा है। सभा में हुक्मीचंद कांकरिया ने 6 उपवास के प्रत्याख्यान लिए।
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