1 सितम्बर की सुबह चिक्कलसंद्रा में आवारा कुत्तों ने एक तीन वर्षीय बच्ची अंबिका को बुरी तरह नोंच डाला, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। साल-दर साल कुत्तों की संख्या बढ़ रही है, जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
शहर में कुत्तों के काटने की घटनाएं पहली बार नहीं हुई हैं, बल्कि हर वर्ष ऐसी घटनाओं में किसी न किसी की मौत हो जाती है, इसके बावजूद बीबीएमपी आज तक आवरा कुत्तों को नियंत्रित करने के प्रभावी उपाय तलाशने में विफल साबित है।
एक अनुमान के मुताबिक २००८ से अगस्त २०१८ के बीच बेंगलूरु में कुत्ता काटने के १.९१ लाख मामले दर्ज हुए हैं। आवारा कुत्तों पर नियंत्रण को लेकर नागरिकों की निरंतर शिकायत के बाद भी न बीबीएमपी की और ना ही राज्य सरकार की तंद्रा टूट रही है।
आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के लिए पशु नसबंदी (श्वान) नियम-2001 में कहा गया है कि कुत्ता नियंत्रण दल बीबीएमपी सीमा में कुत्तों को पकड़ सकते हैं और इसे एबीसी प्रक्रिया से संबंधित दल को सौंपेंगे।
बाद में पकड़े गए कुतों का प्रजनन निरोध उपचार या नसबंदी किया जाता है और फिर जानवर को उसी स्थान पर वापस छोड़ा जाता है, जहां से उसे पकड़ा गया था। हालांकि, एबीसी अभियान पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। इसका मूल कारण एबीसी सेवाओं से संबंधित एनजीओ का भुगतान न करने सहित कई अनियमितताएं हैं। बीबीएमपी का दावा है कि वर्ष 2010 से 2017 तक 3.86 लाख कुत्तों की नसबंदी की गई है और नसबंदी प्रक्रिया पर 24.41 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
वर्ष २०१२ के बाद नहीं हुई गणना
नसंबदी प्रक्रिया पर भारी भरकम राशि खर्च करने के बाद भी आवरा कुत्तों की जन्मदर में कोई कमी नहीं आई है। २०१२ की पशुगणना के अनुसार बेंगलूरु में १.८३ लाख आवारा कुत्ते हैं, जबकि पालतू कुत्ते १.४३ लाख हैं। हालांकि, पांच वर्ष पर होने वाली पशुगणना वर्ष २०१७ में नहीं हुई। कुत्तों के काटने के कारण प्रवीण की मौत के बाद अब पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे अगले महीने पशुगणना करेंगे। इस गणना के बाद ही आवारा कुत्तों की वास्तविक संख्या का पता चलेगा।
अप्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन बड़ा कारक
विशेषज्ञों का कहना है कि आवारा कुत्तों की आबादी में वृद्धि का मुख्य कारण अप्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन है।
कुत्तों की संख्या उन क्षेत्रों में ज्यादा तेजी से बढ़ती है जहां ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अप्रभावी है। कुत्तों को ऐसी जगहों पर खाने और आश्रय का स्थान मिल जाता है और बाद में वे राह चलते लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं।
इसी प्रकार अगर किसी इलाके में १० आवारा कुत्ते हैं और कुत्ता नियंत्रण दल जब उन्हें पकडऩे जाता है तब अक्सर १० में से २ कुत्ते पकड़ में नहीं आते हैं। बाद में यही दो कुत्ते एक वर्ष के भीतर १० पिल्लों के जन्म की वजह बनते हैं। इस प्रकार एबीसी प्रक्रिया से जितने कुत्तों को पकड़ा जाता है, उससे कहीं ज्यादा कुत्ते उन बचे हुए कुत्तों से पैदा हो जाते हैं।
जोन व्यवस्था अपनाएंगे
&अब पालिका के हर जोन में वैसे स्थानों को चिहिन्त किया जाएगा जहां ज्यादा संख्या मेें आवरा कुत्ते होते हैं। इसके बाद उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी। ऐसी शिकायतें भी मिली है कि नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े कुछ गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता एक इलाके से कुत्तों को पकड़ कर दूसरे इलाके में छोड़ देते हैं। अब नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े संगठनों पर निगरानी रखने के साथ ही उनकी जिम्मेदारी भी तय की जाएगी।
आर संपतराज, महापौर