इस नुकसान के लिए ऊर्जा विभाग के अधिकारी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि बिजली की निरंकुश खरीदी पर अगर अंकुश नहीं लगाया जाता है तो अगले 4 वर्षों में राज्य को 44 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होने की संभावना है। राज्य की विभिन्न बिजली वितरण कंपनियों ने केंद्रीय बिजली गालियारे से 5 हजार 514 मेगावाट बिजली खरीदने का अनुबंध किया है। इस अनुबंध के कारण केंद्रीय पॉवर ग्रिड से बिजली खरीदना अनिवार्य है। जबकि राज्य में मांग से अधिक बिजली उपलब्ध है।
वर्ष 2016 से वर्ष 2020 तक राज्य की बिजली वितरण कंपनियों ने पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेस (पीजीसीआईएल) से बिजली के विभिन्न शुल्कों के लिए 7 हजार 425 करोड़ रुपए का भुगतान किया है।उन्होंने कहा कि राज्य में 55 हजार 382 मिलियन यूनिट अतिरिक्त बिजली उपलब्ध है। इसके बावजूद केंद्रीय पॉवर ग्रिड से बिजली खरीदने पर 11 हजार 66 करोड़़ रुपए खर्च किए गए।
राज्य सरकार को तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप कर इस लूट पर रोक लगानी चाहिए। इस नुकसान की जानकारी अगस्त माह में मिली थी इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। अतिरिक्त बिजली केंद्रीय बिजली कारिडॉर को वापस लौटाकर लगभग वार्षिक 11 हजार करोड़ रुपए के नुकसान को टाला जा सकता है। अनुबंध की शर्तों के तहत ऐसा किया जा सकता है।