उन्होंने कहा कि मासिक धर्म महिला के जीवन का अभिन्न अंग है। सभी महिलाओं को 12-13 वर्ष की आयु से 45-50 वर्ष तक की आयु तक प्रति माह मासिक धर्म होता है। इस दौरान पुराने कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। पिछले 20-30 वर्षों में सेनेटरी पैड का उप योग अधिक हो रहा है।
सेनेटरी पैड करीब 8 0 प्रति शत प्लास्टिक का होता है। साथ में हानि कारक रसायनिक भी होते हैं। एक महिला अपने जीवन में 3 हजार पैड का उप योग करती है। बेंगलूरु जैसे शहर में प्रति दिन 90 हजार केजी सेनेटरी पैड एवं डाइपर का कचरा तैयार होता है। इस प्रकार के पर्यावरण नाश पध्दति का समाधान मासिक धर्म के दौरान पर्यावरण स्नेही (इकोफ्रंड्ली) सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए। इस दिशा में लोगों में जागरूकता आनी चाहिए।
ह्यूमैनिटी फाउण्डेशन की अध्यक्ष स्वाती माळगी ने कहा कि मासिक धर्म के बारे में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक सोच आने पर ही सेनेटरी पैड प्रदूषण कम हो सकता है। बच्चों के लिए कॉटन डाइपर का उपयोग करना चाहिए।
आरम्भ में अधिवक्ता पांडुरंग निरलकेरी, डीडीपीयु डॉ. सदानंद पाटील, बीईओ ए.ए. काजी ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। एम.आर. रामदुर्ग, हनुमेश पडसलगी, सलीम बर्चिवाले, अनुपमा, श्रीकांत, एजाज नायकवाडी तथा विभिन्न कालेजों के सैकड़ों छात्राओं ने भाग लिया।