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बैंगलोर

गर्भावस्था में यकृत और गुर्दा हुआ फेल, पर गूंजी किलकारी

जुड़वां शिशुओं में से एक की बची जान
15 से 20 हजार प्रेगनेंसी में एक ऐसा मामला

बैंगलोरMay 14, 2020 / 10:01 pm

Nikhil Kumar

गर्भावस्था में यकृत और गुर्दा हुआ फेल, पर गूंजी किलकारी

गर्भावस्था में यकृत और गुर्दा हुआ फेल, पर गूंजी किलकारी

बेंगलूरु. गर्भावस्था के आठवें माह में यकृत और गुर्दा (Liver and Kidney) के एक साथ जवाब देने के कारण एक गर्भवती (Pregnant) की तबीयत काफी बिगड़ गई। प्रसूता और गर्भस्थ जुड़वा शिशुओं को जान का खतरा था। हालांकि चिकित्सकों को गुर्दा और यकृत के फेल होने की जानकारी नहीं थी क्योंकि यह अचानक और काफी तेजी से हुआ था। कुछ दिन पहले के सभी रिपोर्ट भी सामान्य थे। प्रसव के बाद जब एक-एक कर जांच रिपोर्ट आने लगीं तब गुर्दा और यकृत के काम नहीं करने की बात सामने आई। अंतत: प्रसव हुआ और चिकित्सकों की सूझबूझ के कारण मां मीनू कोठारी (37) और बच्चा स्वस्थ है। हालांकि एक शिशु मृत पैदा हुआ था।

गर्भावस्था जनित गुर्दे और यकृत की विफलता

मणिपाल अस्पताल (Manipal Hospital) की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. विद्या देसाई (Dr. Vidya Desai) ने बताया कि इस अवस्था को गर्भावस्था जनित गुर्दे और यकृत (Pregnancy Induced Liver and Kidney Failure) की विफलता कहते हैं। 15 से 20 हजार प्रेगनेंसी में एक ऐसा मामला सामने आता है। ज्यादातर मामलों में धीरे-धीरे दोनों अंग काम करने लगते हैं। मीनू का गुर्दा अब पूरी तरह से काम कर रहा है जबकि यकृत की प्राकृतिक कार्य प्रणाली में काफी सुधार है। आम तौर पर यकृत के ठीक होने में समय लगता है। मीनू को पीलिया और फैटी लिवर की समस्या भी हुई थी।

60 फीसदी मामलों में कामयाबी

डॉ. देसाई ने बताया कि मीनू को गंभीर अवस्था में अस्पताल लाया गया था। गर्भस्थ शिशुओं का हार्ट रेट (Heart Rate) खतरनाक स्तर पर था। आपातकालीन सिजेरियन किया गया। देर होने पर एक भी शिशु को बचाना नामुमकिन था। 40 वर्ष के अपने करियर में उन्होंने इस तरह के छह से आठ मामले ही देखे हैं। चार दशक पहले 80 फीसदी मामलों में प्रसूता की मौत हो जाती थी। अब करीब 60 फीसदी मामलों में कामयाबी मिलती है।

डॉ. देसाई ने बताया कि प्रसव के बाद मीनू करीब एक सप्ताह तक वेंटिलेटर और डायलिसिस (Ventilator and Dialysis) पर थी। प्रीमेच्योर होने के कारण बच्ची कमजोर और बीमारी थी। लेकिन अब वह स्वस्थ है। वजन भी बढऩे लगा है।

क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनिल कारंत और एनआइसीयू के अध्यक्ष डॉ. कार्तिक नागेश व उनकी टीम प्रसव के बाद मां और शिशु की जिंदगी बचाने में अहम कड़ी साबित हुई।

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