उन्होंने कहा कि जब हमारे मन में विषय सुखों के प्रति अनासक्ति उत्पन्न होगी तब हम ब्रम्हचर्य व्रत को स्वीकार करने को सिद्ध हो जायेंगे। ब्रम्हचर्य व्रत को अंगीकार करने से हम आत्मरमण बन जायेंगे।
पापों का आवेग युवावस्था में ज्यादा आचार्य ने कहा कि पापों का आवेग युवावस्था में ज्यादा होता है। इस अवस्था में हमें विचारों,विकारों, वासनाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है। हमें महान बनना है आदर्शवान और चरित्रवान बनना है तो विषय वासना पर नियंत्रण रखना जरूरी है। विषय वासना से दूर रहने वाला ही प्रभु कृपा का पात्र बन सकता है।