उन्होंने कहा कि बाहर-भीतर दोनों प्रकार से व्यक्ति एक जैसा रहे। सरलता जीवन में रहनी चाहिए। सच्चाई के साथ ऋजुता का योग है। तीसरा है गुस्से को असफल करें। क्रोध को कम करने का प्रयास करना चाहिए और गुस्सा आ भी जाए तो उसे नियंत्रित करें।
आचार्य ने चौथी शिक्षा के रूप जीवन में समता अपनाने की सीख दी। उन्होंने कहा कि प्रिय-अप्रिय हर परिस्थिति में समता रखें। प्रतिक्रिया न करें। प्रिय में अधिक खुशी न मनाएं और अप्रिय में हताश न हों। ये बातें अगर जीवन में आ जाएं तो जीवन कल्याणकारी बन सकता है।