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बैंगलोर

डेटा और डिजिटल मैप के संयोग से बदलेगी ‘तस्वीर’

– भू-स्थानिक आंकड़ों का उपयोग: जनसुविधाओं को बेहतर बनाने में होगा मददगार

बैंगलोरJan 14, 2022 / 11:23 am

Jeevendra Jha

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बेंगलूरु. बदलते समय के साथ ‘डेटाÓ ही सबसे महत्वपूर्ण हो गया है। तकनीकी समावेश से सूचनाओं के संग्रहण और आंकड़ों के विश्लेषण का उपयोग जनजीवन में सुधार के लिए हो रहा है। भू-स्थानिक आंकड़ों (जियो स्पाटियल डेटा) की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है। जियो मैपिंग या टैगिंग भी इसका ही हिस्सा है। भौगोलिक सूचना तंत्र (जीआईएस) के इस उन्नत संस्करण में लोकेशन आधारित चित्रों व सूचनाओं के साथ उपग्रहों की मदद भी ली जाती है। कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए भी जियो मैपिंग का उपयोग बढ़ा। मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों के लिए जियो-टैगिंग की व्यवस्था पहले से ही है। इसमें एक क्लिक पर संबंधित कार्य के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि डेटा और डिजिटल मैप का सही उपयोग हो तो विकास कार्यों की तस्वीर बदल जाएगी और समय पर काम पूरा करने में भी मदद मिलेगी।
तेजी से बढ़ रहा बाजार
अनुमानों के मुताबिक अभी देश में भू-स्थानिक आंकड़ों (जियो स्पाटियल डेटा) का बाजार करीब 15 हजार करोड़ रुपए का है जो अगले तीन साल मेंं बढ़कर 25 हजार करोड़ रुपए का हो जाएगा। हालांकि, अभी इस तरह के आंकड़ों का सीमित उपयोग ही आम लोगों की सहूलियत के लिए होता है। प्रतिरक्षा और खुफिया एजेंसियों के अलावा अब इसका उपयोग शहरी विकास और जन सुविधाओं से जुड़े कार्यों के लिए भी हो रहा है। भू-स्थानिक और रिमोट सेंसिंग आंकड़ों को लेकर पिछले साल जारी नई नीति के बाद कृषि, संपत्तियों के मैपिंग, लॉजिस्टिक और परिवहन, सड़क, जल और भूमि प्रबंधन, वानिकी, अन्य क्षेत्रों में भी इसका उपयोग बढऩे की संभावना है।

खेती से लेकर संपत्ति रिकार्ड तक उपयोग
मैपिंग में लेजर आधारित लाइन लेवलिंग और ऑटो गाइडेड तकनीक जैसे उन्नत विकल्प भी हैं जिनका उपयोग वृहद पैमाने पर खेती या अन्य कार्यों में भी किया जा सकता है। अलग-अलग किस्म के आंकड़ों और लोकेशन के आधार पर विश्लेषण के कारण खेती के लिए क्षेत्रवार नीति भी बनाई जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से भूमि का सर्वेक्षण कर डिजिटिल अभिलेख तैयार करने की केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना भी भू-स्थानिक डेटा पर ही आधारित है।

कई स्टार्ट-अप आए आगे
भू-स्थानिक आंकड़ों के संग्रहण, प्रबंधन और उपयोग को लेकर नई नीति की घोषणा के बाद इस क्षेत्र में निजी कंपनियों के साथ कई स्टार्ट-अप भी आगे आए हैं। हालांकि, विदेशी कंपनियों के लिए कुछ पाबंदियां हैं। विदेशी कंपनियां एक मीटर से कम दूरी के भू-स्थानिक आंकड़े नहीं रख सकती। इसके लिए उन्हें किसी स्थानीय कंपनी की मदद लेनी पड़ेगी। भू-स्थानिक सेवओं की बढ़ती मांग के बीच एक निजी कंपनी ने हाल ही में देश के १०० शहरों का उच्च गुणवत्ता वाला थ्री डी मानचित्र बनाने की घोषणा की है, जो शहरी विकास, स्मार्ट सिटी, सौर ऊर्जा उत्पादन आदि में मददगार होगा।

नई ड्रोन, उपग्रह नीति से भी फायदा
निजी कंपनियों को वाणिज्यिक उपयोग के लिए उपग्रहों के प्रक्षेपण की अनुमति और नई ड्रोन नीति के बाद भू-स्थानिक आंकड़ों के बाजार को नई शक्ति मिली है। यह सिर्फ अब मोबाइल पर लोकेशन ट्रेस करने तक ही सीमित नहीं रह गया है। सात साल पहले इसरो ने भी मैप आधारित भू-स्थानिक सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए भुवन नामक प्लेटफार्म शुरू किया था। इसरो ने कुछ समय पहले ही एक मैपिंग सेवा प्रदाता के साथ डिजिटल मैप के लिए करार किया है। कर्नाटक प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र जीआईएस का उपयोग वर्षा के पूर्वानुमान, निगरानी और बाढ़ जैसी स्थिति के रियल टाइम अनुमान के लिए करता है।


भू-स्थानिक डेटा और ड्रोन से जुड़ी नई नीतियों के कारण इस क्षेत्र को नई तकनीकी ऊंचाई मिलेगी। यह क्षेत्र विपुल संभावनाओं से भरा है। पाबंदियां कम होने से उपयोग बढ़ेगा। आने वाला समय ‘जियोÓ युक्त होगा।
ए. कुमार, प्रबंध निदेशक, ईएसआरआई इंडिया

मांग और आपूर्ति के बीच अभी काफी अंतर है। भू-स्थानिक आंकड़ों से जुड़े क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक नीतियां बनाई जानी चाहिए। नई नीति से इस क्षेत्र के विकास और नवोनमेष में मदद मिलेगी।
– अनन्या नारायण, निदेशक, जियोस्पाटियल वल्र्ड कल्सटिंग

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