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बैंगलोर

विश्वविद्यालयों की वित्तीय जिम्मेदारी उठाए सरकार : एआइडीएसओ

– फीस बढ़ाने सहित केएचइसी के अन्य प्रस्तावों पर जताई आपत्ति

बैंगलोरJan 05, 2024 / 10:09 pm

Nikhil Kumar

विश्वविद्यालयों की वित्तीय जिम्मेदारी उठाए सरकार : एआइडीएसओ

विश्वविद्यालयों की वित्तीय जिम्मेदारी उठाए सरकार : एआइडीएसओ

अखिल भारतीय लोकतांत्रिक छात्र संगठन (एआइडीएसओ) ने कर्नाटक उच्च शिक्षा परिषद (केएचइसी) के सरकारी कॉलेजों में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत या हर दो साल में 20-25 प्रतिशत शुल्क वृद्धि के प्रस्ताव की आलोचना की है। सरकार से विश्वविद्यालयों की वित्तीय जिम्मेदारी अपने हाथों में लेने की मांग की है।एआइडीएसओ के राज्य सचिव अजय कामत ने गुरुवार को कहा कि सरकारी विश्वविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की फीस में एकरूपता लाने के लिए केएचइसी ने राज्य सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखा है। विभिन्न विभागों के लिए 11,500 रुपए से शुरू होने वाली यूजी फीस निर्धारित की है। कई सरकारी विश्वविद्यालयों में पहले से ही शुल्क ज्यादा है। गरीब छात्रों की उच्च शिक्षा पर बोझ पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों में डिग्री शुल्क पहले से ही सरकारी डिग्री कॉलेजों की तुलना में 300 प्रतिशत अधिक है। नामांकन सबसे निचले स्तर पर आ गया है। कई सरकारी डिग्री कॉलेज पहले ही क्लस्टर विश्वविद्यालयों में परिवर्तित हो चुके हैं। सरकारी कॉलेजों में स्नातक पाठ्यक्रम शुल्क 3500 रुपए से शुरू होती है, लेकिन क्लस्टर विश्वविद्यालयों में शुरुआती पाठ्यक्रम शुल्क 10 हजार रुपए हैं।

इस पृष्ठभूमि में, राज्य सरकार को गरीब छात्रों को ध्यान में रखते हुए, सरकारी विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त अनुदान देना चाहिए और यहां के डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए सरकारी डिग्री कॉलेजों की फीस तय करनी चाहिए।कामत ने कहा कि केएचइसी के प्रस्ताव के अनुसार सिंडिकेट की अनुमति से सरकारी विश्वविद्यालय फीस में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत या हर दो साल में 20-25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकते हैं। अगर यह लागू हुआ तो दो साल के भीतर सरकारी विश्वविद्यालयों की डिग्री फीस निजी डिग्री कॉलेजों के स्तर पर पहुंच जाएगी।

कामत ने आरोप लगाया कि कई विश्वविद्यालय फंड की कमी का बहाना बना पाठ्यक्रम शुल्क बढ़ाते हैं। इसीलिए सरकारी डिग्री कॉलेजों और सरकारी विश्वविद्यालयों की फीस में काफी अंतर है। इसलिए, यदि सरकार की मंशा एक समान फीस प्रणाली लाने की है, तो सरकार को सरकारी विश्वविद्यालयों के डिग्री पाठ्यक्रमों में सरकारी डिग्री कॉलेजों के समान शुल्क पैमाने को लागू करना चाहिए। तभी गरीब छात्र सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़ सकेंगे।

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