बेंगलूरु. जिस उम्र में अधिकांश युवा खेलने-खाने में व्यस्त रहते हैं, उसी उम्र में कुछ विद्यार्थियों ने दूसरों को राहत देने और मुरझाए चेहरों पर उम्मीद की मुस्कान लाने का बीड़ा उठाया है। प्रतिदिन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से घर लौट रहे प्रवासी कामगारों को नाश्ता-पानी मुहैया कराने के लिए घर से निकलते हैं और शाम को चेहरे पर संतोष लेकर लौट आते हैं। सभी विद्यार्थी हैं। इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते दो सौ तक पहुंच गई है बढ़ती ही जा रही है।
प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा ने बेंगलूरु के ध्रुव जत्ती को इतना परेशान किया कि उन्होंने इनकी मदद करने की ठानी और बेंगलूरु स्टूडेंट कम्यूनिटी के नाम से एक ग्रुप बना दिया। भोजन, पानी की बोतल, बिस्कुट और कुछ फल लेकर जब विद्यार्थियों का यह समूह पैलेस मैदान पहुंचा तो यूपी जाने के लिए पंजीकरण करा रहे लोगों को ऐसा लगा कि उनके अपने लोग मदद के लिए आ गए हैं।
ध्रुव बताते हैं कि पहले तो हमने खुद ही पैसे संग्रह किए और जब लोगों को पता चला तो दान भी मिलने लगा और हमारा काम बढऩे लगा। इसी बीच जब पता चला कि ढेर सारे बिहारी मूल के मजदूर ऐसे हैं जो टिकट का किराया नहीं दे सकते तो ध्रुव और उनके साथियों ने टिकट का खर्च भी दिया। नन्हें हाथों से हो रहे इस बड़े काम ने ध्रुव और उनके साथियों को काफी नाम दिया है लेकिन ध्रुव कहते हैं कि इससे एक आत्मिक संतुष्टि मिलती है।
ग्रुप में कई छात्राएं भी कोरोना योध्दाओं के इस ग्रुप में कई छात्राएं भी हैं। दिल्ली में पढ़ाई कर रही मेदनी भी इस काम के लिए पूरा समय दे रही हैं। वे कहती हैं कि महिलाओं की मदद के लिए सैनिटरी नैपकिन से लेकर पानी की बोतल, बच्चों के लिए चॉकलेट का भी वितरण किया जा रहा है। मेदनी कहती हैं कि इनती समस्याओं से घिरे लोगों को देखकर हृृदय द्रवित होता है। भूखे-प्यासे लोगों की मदद करके दिल को खुशी मिलती है और यह खुशी जो पैसे से खरीदी नहीं जा सकती।