पत्रिका के साथ बात करते हुए राघवन ने कहा ‘टीके का विकास प्री-क्लीनिकल स्टेज में है। अब विनिर्माण प्रक्रिया विकास के लिए फंडिंग का इंतजार है। इसकी प्रक्रिया चल रही है। चुहियों और हैम्सटर पर परीक्षण पूरा हो चुका है। चूहों पर परीक्षण के दौरान यह कोरोना के विभिन्न वैरियंट के खिलाफ कारगर साबित हुआ है। इस टीके से न सिर्फ चूहों की वायरस से सुरक्षा हुई बल्कि उनमें मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली भी विकसित हुई। क्लीनिकल परीक्षण के बाद यह पता चलेगा कि मनुष्यों पर यह कितना प्रभावी होगा।’
राघवन ने कहा कि चूंकि, इसे कमरे के तापमान पर भंडारित किया जा सकता है इसलिए इससे रणनीतिक रूप से सरकार को काफी लाभ मिलेगा। क्योंकि, इसे दूर-दराज के गांवों में भेजने में कोई असुविधा नहीं होगी। इस टीके को 37 डिग्री तापमान पर एक महीने तक रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार से अनुदान हासिल करने की प्रक्रिया चल रही है। उम्मीद है यह जल्द मिल जाएगी। अनुदान मिलने के बाद सामग्री विकास और जानवरों पर उसके प्रभाव आदि के परीक्षण में लगभग छह माह लग जाएंगे। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से क्लीनिकल ट्रायल शुरू होगा। पहले 4-5 महीने में फेज-1 और फेज-2 के परीक्षण पूरे हो जाएंगे और फिर फेज-3 के परीक्षण शुरू होंगे। उन्होंने बताया कि फंडिंग मिलने के बाद एक से डेढ़ साल में यह वैक्सीन तैयार हो जाएगा।
दरअसल, अभी तक तैयार कोरोना वायरस के टीकों को अत्यंत कम तापमान पर भंडारित करने की चुनौती होती है। कोविशील्ड को दो-आठ डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है तो फाइजर के टीके को शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान पर रखना होता है। इस टीके का विकास आइआइएससी के बायोटेक स्टार्टअप मिनवैक्स द्वारा किया जा रहा है।
क्लीनिकल परीक्षण आइआइएससी के संक्रामक रोग अनुसंधान केंद्र (सीआइडीआर) स्थित कोविड-19 वैक्सीन परीक्षण केंद्र में किया गया। केंद्र के प्रभारी एवं टीके के विकास में शामिल आइआइएससी में माइक्रोबॉयोलॉजी एवं सेल बॉयोलॉजी (एमसीबी) विभाग के प्रोफेसर शशांक त्रिपाठी ने बताया कि कोरोना के दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ब्राजील वैरिएंट पर भी इस टीके को आजमाया गया। यह कोरोना के मौजूदा लगभग सभी संस्करणों के खिलाफ प्रभावी है। जानवर मॉडल में परीक्षण में त्रिपाठी ने अहम भूमिका निभाई।
टीके का विकास करने वाली टीम में ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑेर्गेनाइजेशन (सीएसआइआरओ) के वैज्ञानिक भी शामिल हैं। सीएसआइआरओ में कोविड-19 परियोजना का नेतृत्व करने वाले एसएस वासन के अनुसार जब यह टीका लेने वाली चूहों के खून में जिंदा वायरस के सभी स्वरूपों के प्रति मजबूत प्रतिरोधक क्षमता देखी गई। यह सार्स-सीओवी-2 के अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा सभी स्वरूपों पर असरदार रहा। गौरतलब है कि इस संस्थान में ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका समेत दो कोविड-19 रोधी टीकों का प्री-क्लिनिकल आकलन किया है।